[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == विवेक : == नो छादयेन्नापि च लूषयेद् , मानं न सेवेत प्रकाशनं च। न चापि प्राज्ञ: परिहासं कुर्यात् , न चाप्याशीर्वादं व्यागृणीयात्।।
—समणसुत्त : २३९
(अमूढ़दृष्टि या विवेकी) किसी के प्रश्न का उत्तर देते समय न तो शास्त्र के अर्थ को छिपाए और न अपसिद्धान्त के द्वारा शास्त्र की विराधना करे। न मान करे और न अपने बड़प्पन का प्रदर्शन करे। न किसी विद्वान का परिहास करे और न किसी को आशीर्वाद दे।