जैसे आकाश को मुट्ठियों से मारना, तंडुलो के लिए भूसा काटना, तेल के लिए बालू को यंत्र से पीलना, घी के लिए जल का मंथन करना व्यर्थ है, वैसे ही दु:ख—निवारण के लिए शोक—विषाद आदि करना व्यर्थ है।