परद्रव्य अर्थात् धन—धान्य, परिवार व देहादि में अनुरक्त होने से दुर्गति होती है और स्वद्रव्य अर्थात् अपनी आत्मा में लीन होने से सुगति होती है। ऐसा जानकर स्वद्रव्य में रत रहो और परद्रव्य से विरत।