पारस चैनल के माध्यम से आचार्यश्री का गुणानुवाद किया। यह आचार्य परम्परा आगम परम्परा है। आचार्यश्री आगम के विरुद्ध न कोई बात करते थे, न आगम के विरुद्ध प्रवचन करते थे। ठीक इसी तरह उनकी प्राचीन शिष्या ज्ञानमती माताजी सैद्धान्तिक बाते बताती हैं। आगम के विरुद्ध एक शब्द नहीं बोलती हैं। । हम कल्पना करें आज से ६२ साल पहले कुंथलगिरि पर्वत पर सन् १९५५ में आचार्यश्री ने अंतिम सल्लेखना की ओर इतने उन्मुख थे कि उन्हें किसी के संबोधन की आवश्यकता ही नहीं थी। वह अन्तर में मग्न थे। सन् १९५५ में आचार्यश्री कुंथलगिरि में कुलभूषण-देशभूषण जी की प्रतिमा के समक्ष १२ वर्ष की सल्लेखना ली थी। ज्ञानमती माताजी उस समय क्षुल्लिका अवस्था में वीरमती माताजी थी, वह आचार्यश्री की सल्लेखना के समय वहाँ गई थी। भादों शुक्ल दूज को उन्होंने अपने शरीर का परित्याग करके उपपाद शैय्या पर जाकर वैक्रियिक शरीर धारण किया। आज लगभग १६०० साधु विहार कर रहे हैं, यह सब आचार्यश्री का ही उपकार है। भगवान आदिनाथ ने युग की आदि में जीवन जीने की कला सिखाया। आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज जो कि २०वीं शताब्दी के अंदर मुनि परम्परा को जीवन्त किया। ज्ञानमती माताजी जो कि प्रथम बालब्रह्मचारिणी इन्होंने आर्यिका परम्परा को जीवन्त किया। ऐसे थे प्रथमाचार्य शांतिसागर जी महाराज, वे इस युग के लिए वरदान थे। पूज्य आर्यिकाशिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी ने बताया कि सोलहकारण भावना का १५वाँ दिन है-मार्गप्रभावना भावना, मार्ग यानि मोक्षमार्ग की प्रभावना। ज्ञान के द्वारा तप के द्वारा, जिनपूजा आदि के द्वारा धर्म की प्रभावना की जाती है, लोक में उसकी प्रसिद्धि होती है। आचार्यश्री शांतिसागर जी महाराज ने अपने जीवन में मार्गप्रभावना की है, दक्षिण से उत्तर तक विहार करके धर्मप्रभावना की है। आज पूज्य माताजी ने सिद्धशिला का ध्यान कराया। सभी भक्तों ने भावों से सिद्धशिला का स्पर्श किया। सिद्धशिला पर राजते सिद्ध अनंतानंत। नमूँ त्रिकाल सिद्ध सब पाऊँ सौख्य अनंत।। सिद्धशिला के ध्यान के पश्चात् माताजी ने सभी भक्तों को अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। स्वामीजी ने आचार्यश्री की चर्या पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जब मुनियों के दर्शन दुर्लभ थे, ऐसे समय आचार्यश्री ने मुनि दीक्षा लेकर शिष्यों का संग्रह करके उत्तर से दक्षिण तक विहार करके मार्ग दिखाया। उसी का परिणाम है कि वर्तमान में भारतवर्ष में लगभग १५००, १६०० साधु विचरण कर रहे है। मुनि दीक्षा लेने के बाद प्रभावना भाते हैं, बोहिलाहो, सुगइगमणं, समाहिमरणं, जिनगुणसंपत्ति होऊ मज्झं। ऐसे शांतिसागर महाराज को हम उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर भक्ति से नमन करते हैं। प्रातःकालीन 9:०० बजे पूज्य चंदनामती माताजी ने लाइव टीवी एवं मुंबई महानगर के भक्तों को विधिवत रूप से सामायिक विधि सिखाई”सभी श्रधालुओं ने बहुत ही अच्छी तरह से सीखी”