वृक्षों से प्राप्त लकड़ी ईंधन कहलाती है जो की भोजन पकाने के काम आती है | इसी लकड़ी को जलाकर कच्चा पक्का कोयला बनाया जाता है जो की अंगीठी में काम आता है तथा लकड़ी के बुरादे को भी उपयोग किया जाता है और एक विशेष प्रकार की अंगीठी में बीच में लोहा का गोल रोल लगाकर उस बुरादे को भर देने है तथा उसमे नीचे से एक -२ लकड़ी डालकर उससे भोजन पकाने का कार्य करते है |
गाँवो में आज भी यदा – कदा इसका प्रयोग देखा जाता है | अत्यधिक पिछड़े ग्रामो में तथा गरीब परिवारों में आज भी चूल्हा , अंगीठी आदि पर ही काम होता है | उच्चवर्गीय तथा मध्यमवर्गीय परिवारों में इसका स्थान आज रसोईगैस , बिजली से चलने वाली अंगीठी आदि ने ले लिया है |
लकड़ी के चूल्हे पर जो भोजन बनाया जाता है वह पौष्टिक तथा सुस्वादु रहता है जबकि गैस में बनाया भोजन रासयनिक गैस से बनता है अत: उसमे न तो वह स्वाद रहता है और नं पौष्टिकता रहती है |