

परम पूज्य श्री विदुषी माता,ज्ञेय श्री का करो नमन । 
कनक कलश मे क्षीर वारी ले, शुभ भवो से चरण धरो।
मलयागिर का उत्तम चन्दन, केशर संग में लेओ घिसाय । 
रामभोग अरु बासमती के, सोम सदृश हैं यह अक्षत। 
सारा जग है जिसके वश में , ऐसा मन्मथ बड़ा प्रबल । 
नाना विध के मनहर व्यंजन ,खूब भरवे हैं आज तलक।
कनक दीप में घृतमय वाती ,जगमग जगमग ज्योति जले । 
दसविध अंगी, धूप सुगंधी, दिग दिगन्त में सुरभि भरे । 
प्रासुक मिठे उत्तम फल ये, नाना विध के अति रमणीक। 
जयमाला