

माँ विज्ञाश्री प्रज्ञा दाता, तुम सरस्वती या जिनवाणी । 
जल सा उज्ज्वल जिनका जीवन, जल से निर्मल जिनकी चर्या। 
चरित्र चन्द्रिका माताजी ,चंदन सा जीवन महकाया । 
अक्षत आत्मागुण गणधारक ,अक्षत पद की अभिलाषी हो। 
हे परम ब्रह्मा की आराधक, असिधारा व्रत परिपालक हो। 
निर्वेद भाव का सद व्यंजन, यह तेरा जीवन बना हुआ।
सम्यग्दर्शन के दीप जला, दिवाली आप मनाती हैं।
सिध्दष्ट गुणों को ध्याकर के,कर्माष्टक धूप जलती हो। .jpg)
कर्मों के फल अब तक पाए ,सदधर्मों का फल पाना हैं। 


माँ विज्ञा प्रज्ञामयी, गुण रत्नों की खान ।