

परम् पूज्य आचार्य शिरोमणि, विरागसागरजी गुरुवर। 
भव तापो से तपा हुआ हूँ, तुम चरणों में शान्ति मिले। 
जग की आकुलताएँ सारी,ममता का विष पिला रही। 
जितने भी पद पाये मैंने, सबका अब तक नाश हुआ। 
अब तक जग में भटका गुरुवर, पर की आस वासना से। 
तीन लोक के सकल पदारथ,क्षुधा अग्नि के ग्रास बने।
ज्ञान दीप बिन अब तक जग में,निज पद का नही भान हुआ।
वसु विधि वश होकर गुरुवर,भव सागर में भटक रहा। .jpg)
जिस फल के बिन निष्फल सब कुछ, वह फल मैं भी पा जाउ।
शुभ भावो का निर्मल जल है, विनय भाव का है चन्दन। 
माँ श्यामा के लाड़ले,कपूरचंद के लाल।