कम्पिलजी तीरथ नमूँ, नमूँ विमल पदपद्म
भक्ति सहित अर्चा करे, मिले निजातम सद्म ||१||
चालीसा श्री विमल का, कहूँ भक्ति कर जोड़
मनवांछित सब पूर्ण हों , आत्मशक्ति बेजोड ||२||
भारतदेश में यू. पी. आता , जिला फर्रुखाबाद कहाता ||१||
वहीं अवस्थित कम्पिल नगरी ,गंगा नदी किनारे बसती ||२||
वन्दनीय काम्पिल्यपुरी है, विमलप्रभू की जन्मथली है ||३||
कहीं-कहीं इस तीर्थभूमि का, नाम भोगवति, माकंदी है ||४||
तेरहवें तीर्थंकर जिनवर , हुए करोड़ों वर्ष पूर्व जब ||५||
इन्द्रों ने नगरी को सजाया, क्रम-क्रम से कल्याण मनाया ||६||
कृतवर्मा राजा के महल में, माता जयश्यामा आँगन में ||७||
पन्द्रह मास रतन की वर्षा, धनकुबेर हर्षित हो करता ||८||
ज्येष्ठ वदी दशमी तिथि आई, गर्भकल्याण हुआ सुखदाई ||९||
माघ सुदी जब आई चतुर्थी, जन्मे थे तब त्रिभुवनपति जी ||१०||
त्रिभुवन में गूंजी शहनाई , देव की सेना नगरी आई ||११||
गिरि सुमेरु पर न्ह्वन किया था, मात पिता को ला सौंपा था ||१२||
पलना सभी झुलाएं प्रभु को, इन्द्र करें तांडव हर्षित हो ||१३||
पुनः युवावस्था जब पाया, इन्द्र ने प्रभु का ब्याह रचाया ||१४||
दीर्घकाल तक राज्यसंचालन , पुनि वैराग्य जगा उनके मन ||१५||
जन्मतिथी में ही दीक्षा ली, माघ शुक्ल की आई चतुर्थी ||१६||
कम्पिलजी के ही उद्यान में, केवलज्ञान रमा को परणें ||१७||
दिव्यध्वनि से जग सम्बोधा, दृश्य बड़ा वह रोमांचक था ||१८||
कम्पिलजी में एक है टीला , है अघातिया नाम उसी का ||१९||
अनुश्रुति कहती यहीं प्रभू ने, कर्म नाश पाया कैवल्य था ||२०||
है ध्वंसावशेष मंदिर का, कभी-कभी मिलती हैं मूर्तियां ||२१||
आदिप्रभू ,पारस,महावीरा , प्रभु का समवसरण भी आया ||२२||
महासती द्रौपदि यहाँ जन्मीं, हुआ स्वयंवर हैं स्मृति भी ||२३||
द्रौपदि कुंड वहाँ स्थित है, और कथानक जुड़े कई हैं ||२४||
इक प्राचीन दिगंबर मंदिर , कहें देव के द्वारा निर्मित ||२५||
गंगा नदि से प्राप्त हुई है, चौथे काल की जिनमूर्ती है ||२६||
जिनसंस्कृति की शिल्पकला ये, दिखलाती प्राचीन रूप है ||२७||
तीन दिगंबर अतिथीगृह हैं, और आधुनिक कई बने हैं ||२८||
है पर्यटन क्षेत्र यह प्यारा, जिसका देखो बड़ा नजारा ||२९||
विमलनाथ खड्गासन प्रतिमा,जैन जगत की शान अनुपमा ||३०||
जैन नहीं बसते हैं यहाँ पर,किन्तु योजनाएं कुछ नूतन ||३१||
संस्कृति का भी केन्द्र है नगरी,कई एक घटनाएं और भी ||३२||
हरीषेण चक्री यहाँ जन्मे, उनके पिता मुनीदीक्षा ले ||३३||
तपकर केवलज्ञान को पाया, जीवन अपना सफल बनाया ||३४||
हरीषेण दसवें चक्री थे, राज्य किया और दीक्षा लेके ||३५||
सिद्धशिला को प्राप्त कर लिया, शिवलक्ष्मी का वरण कर लिया ||३६||
राज्य अवस्था में जब थे वे, जिनप्रतिमा पधराईं उनने ||३७||
ब्रम्हदत्त बारहवें चक्री, विषयलम्पटी हुए नारकी ||३८||
विमलनाथ जिननगरी प्यारी, इतिहासिक महिमामय न्यारी ||३९||
इसकी रज मस्तक पर धारो ,विमलप्रभू को शीश नमा लो ||४०||
जिन जन्मभूमि का चालीसा, जो चालिस दिन तक पढ़ते हैं
इस चार कल्याणक से पूजित, नगरी की यात्रा करते हैं
श्री विमलप्रभू की भक्ती से, मन विमल सदा हो जाता है