हस्तिनागपुर तीर्थ को, शत-शत करूं प्रणाम ||१||
तीन-तीन तीर्थेश के, जहाँ चार कल्याण चालीसा
उस तीर्थ का, सुनो भव्य मन आन ||२||
ज्ञानज्योति प्रगटित करे, उन प्रभुवर की भक्ति
शिवपद का मारग मिले, प्रगटे आतम शक्ति ||३||
हस्तिनागपुर तीरथ पावन, यहां का कण-कण है मनभावन ||१||
जन्मभूमि तीर्थंकर प्रभु की, सुर,नर,मुनिगण से नित वंदित ||२||
भादों कृष्णा पाख तिथी थी, गर्भ बसे प्रभु शांतिनाथ जी ||३||
ज्येष्ठ वदी चौदस को जन्में, विश्वसन माँ ऐरा हरषें ||४||
उस ही तिथि में दीक्षा ले ली , लौकान्तिक सुर ने स्तुति की ||५||
पौष सुदी दशमी शुभ आई, केवलज्ञान हुआ सुखदाई ||६||
श्रावण वदि दशमी थी पावन, कुंथुनाथ का गर्भकल्याणक ||७||
एकम सित वैशाख की आई, जन्म से प्रभु के भू हरषाई ||८||
सित एकम वैशाख में दीक्षा , हस्तिनागपुर का उपवन था ||९||
केवलज्ञान हुआ था प्रभु को, चैत्र शुक्ल शुभ तीज तिथी को ||१०||
पुनः प्रभू अरनाथ जिनेश्वर , फाल्गुन कृष्णा तृतिया भू पर ||११||
गर्भ में आन पधारे स्वामी , पुण्य धरा यह जग में नामी ||१२||
मगशिर शुक्ला चौदस तिथि में, श्री अरनाथ प्रभू थे जन्में ||१३||
मगशिर सुदि दशमी तिथि दीक्षा ली, तपकल्याणक की बेला थी ||१४||
कार्तिक सुदि बारस की तिथि में, केवल रवि पाया था प्रभु ने ||१५||
कामदेव, तीर्थंकर, चक्री , तीनों प्रभुवर की पदवी थी ||१६||
सर्वप्रथम प्रभु आदिनाथ ने , इस ही पावन पूज्य धरा पे ||१७||
इक्षूरस आहार लिया था , देव ने पंचाश्चर्य किया था ||१८||
वह वैशाख सुदी थी आई , जो अक्षय तृतिया कहलाई ||१९||
दानतीर्थ का किया प्रवर्तन , श्री श्रेयांस नृपति ने उस दिन ||२०||
श्री आचार्य अकम्पन आये, सात शतक मुनि संघ में लाए ||२१||
बलि ने तब उपसर्ग किया था,जनता का मन अति व्याकुल था ||२२||
विष्णुकुमार मुनी वामन बन, रक्षा की उपसर्ग दूर कर ||२३||
रक्षाबंधन पर्व चल गया , श्रावण सुदि पूनम का दिन था ||२४||
गंगा में गज ग्राह ग्रसे जब , तब सुलोचना णमोकार पढ़ ||२५||
सारी विपदा दूर भगाया, वह स्थल यह ही कहलाया ||२६||
द्रौपदि सति का चीर बढ़ा था ,सतियों की प्रभु लाज रखा था ||२७||
कौरव पांडव की रजधानी, हस्तिनागपुर नगरी मानी ||२८||
जयकुमार श्रेयांस सोमप्रभ , आदिनाथ प्रभुवर के गणधर ||२९||
इनमें से श्रेयांस नृपति ने, स्वप्न में मेरु सुदर्शन देखे ||३०||
रानी रोहिणी यहीं हुई हैं ,रोहिणी व्रत की कथा जुडी है ||३१||
और अनेकों जुड़े कथानक, वर्तमान का इक रोमांचक ||३२||
सरस्वती सम गणिनी माता, ज्ञानमती गणिनी विख्याता ||३३||
जब से इस धरती पर आईं, यह नगरी जग भर में छाई ||३४||
जम्बूद्वीप बना है सुन्दर, दूर-दूर से आएं यात्रिगण ||३५||
कमाल जिनालय,तीन लोक है,तेरह द्वीप तीन मूरत है ||३६||
ध्यान का सुन्दर मंदिर प्यारा ,इस तीरथ का भव्य नजारा ||३७||
यहाँ अनेकों जिनमंदिर हैं, यात्रा करती रोमांचित है ||३८||
है प्राचीन दिगंबर मंदिर, नशिया अरु कैलाश जी पर्वत ||३९||
सभी भव्य इस तीर्थ पे आओ, दर्श से अतिशय पुण्य कमाओ ||४०||
जो स्वर्ग सरीखे इस तीरथ का , अर्चन वंदन करते हैं
श्री शान्ति,कुन्थु,अर जिनवर की, इस पावन भू को यजते हैं
उनका जीवन उज्जवल होता , हर मनवांछित मिल जाता है
भव्यत्व प्रगट हो जाय ‘इंदु’ आत्मा को तीर्थ बनाता है ||१||