तीनों लोकों में मध्यलोक के अंदर असंख्यात द्वीप- समुद्रों में प्रथम द्वीप का नाम है – जम्बूद्वीप
प्राचीन शास्त्रों में कही गई यह रचना हस्तिनापुर में पू० ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा से सन् १९८५ में निर्मित हुई है ।
उसके दर्शन करने दुनिया भर से लोग हस्तिनापुर आते हैं ।
अथवा
मध्यलोक का प्रथम द्वीप . इसमें ७८ अकृत्रिम चैत्यालय हैं , जिनमें सुमेरू पर्वत के १६ , गजदंत के ४, जम्बू-शाल्मलि वृक्ष के २ , वक्षारगिरी के १६ , विजयार्द्ध पर्वत के ३४ एवं षट्कुलाचालों के ६ चैत्यालय हैं .
पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी की प्ररणा से ‘ दिगंबर जैन त्रिलोक शोध संस्थान’ द्वारा जम्बूद्वीप की आगम वर्णित भव्य रचना जिनका निर्माण हस्तिनापुर (जिला-मेरठ, उ.प्र.) में किया गया है (समय-ई.सन् १९८५). जम्बूद्वीप की रचना के निर्माण के कारण यह विशाल परिसर ‘जम्बूद्वीप स्थल’ के नाम से जाना जाता है , जिसमें कमल मंदिर , ध्यानमंदिर , ॐ मंदिर , त्रिमूर्ति मंदिर , तेरहद्वीप रचना मंदिर इत्यादि अनेक सुन्दर जिनालय निर्मित हैं . धरती का स्वर्ग माना जाने वाला यह तीर्थ पर्यटकों के साथ-साथ शोधकर्ताओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र है. पूज्य माताजी की प्रेरणा से ४ जून सन् १९८२ को तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमाती इंदिरागांधी द्वारा राजधानी दिल्ली से उद्घाटित ‘जम्बूद्वीप ज्ञान ज्योति रथ ‘ ( जम्बूद्वीप माॅडल सहित) द्वारा १०४५ दिन तक देशव्यापी धर्मंप्रभावना करने के पश्र्चात् २८ अप्रैल १९८५ को तत्कालीन रक्षामंत्री श्री पी.वी. नरसिम्हारव द्वारा यह ज्ञानज्योति अखण्ड रूप से जम्बूद्वीप में स्थापित की गयी।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
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