==हिंसा== प्रमाद से अपने या दूसरों के प्राणों का घात करने को हिंसा कहते हैं। इस पाप के करने वाले हिंसक, निर्दयी, हत्यारे कहलाते हैं।
यशोधर महाराज ने शांति के लिए अपनी माता की प्रेरणा से आटे का मुर्गा बनाकर चंडमारी देवी के सामने बलि चढ़ा दी। इस संकल्पी हिंसा के पाप से वे पुत्र और माता दोनों ही मरकर मयूर और कुत्ता हुए। पुन: मगर-साँप, मत्स्य-मगर, बकरा-बकरी, बकरा और भैंसा हुए। अनन्तर मुर्गा-मुर्गी हुए। इन छह: भवों में इन दोनों ने असंख्य दु:ख भोगे हैं। मुर्गा-मुर्गी मरते समय मुनि के मुख से णमोकार मंत्र को श्रवणकर राजा यशोमति (यशोधर के पुत्र) की रानी से युगल पुत्र-पुत्री हो गये। इनका नाम अभयरुचि और अभयमती था। बाल्यकाल में ही इन दोनों को जातिस्मरण होकर वैराग्य हो गया, तब दोनों क्षुल्लक-क्षुल्लिका बन गये। एक समय जल्लाद लोग इन्हें बलि के लिए ले आये। तब क्षुल्लक महाराज ने चण्डमारी देवी को और राजा को अपने पूर्व भव सुनाकर हिंसा का त्याग करा दिया और अहिंसक बना दिया। [[श्रेणी:बाल_विकास_भाग_२]] [[श्रेणी: शब्दकोष]] हिंसा अभाव – Himmsaa Abhaava. Non-violence, an excellence of Lord Arihant. अर्हत भगवान के केवलज्ञान का एक अतिशय। हिंसा अर्थात् अदया का अभाव।