परिग्रह-जमीन, मकान, धन, धान्य, गाय, बैल इत्यादि से मोह रखना, इन्हीं संसारी चीजों के इकट्ठे करने में लालसा रखना सो परिग्रह है इस पाप के करने वाले लोभी, बहुधंधी, कंजूस कहलाते हैं।
एक सेठ, करोड़ों का धन पास होते हुए भी बहुत ही कंजूस था। न किसी को कुछ देता था और न स्वयं ठीक से खाता पहनता था। यहाँ तक कि तेल की खल (पिण्याक) खाकर पेट भर लेता था, अत: उसके शरीर से खल की गंध आने लगी थी, इसीलिए उसका नाम ‘पिण्याकगंध’ प्रसिद्ध हो गया। वह अपने बच्चों से कहता कि पड़ौसी बच्चों के साथ कुश्ती खेलो।
बस उनके शरीर का तेल तुम्हारे शरीर से लग जायेगा। किसी समय राजा का तालाब खोदते समय एक नौकर को सोने की सलाइयों से भरा एक संदूक मिला। एक-एक करके उसने लोहे के भाव से अट्ठानवे सलाइयाँ खरीद लीं किन्तु वे सलाइयाँ सोने की थीं। राजा के यहाँ इसका सब भेद खुल जाने से राजा ने उसका सब धन लूटकर उसके कुटुम्बीजनों को जेल में डाल दिया। इस घटना को सुनकर पिण्याकगंध अपने पैर तोड़कर अति लोभ से मरकर नरक चला गया। इसलिए परिग्रह की अति लालसा छोड़कर न्याय से धन कमाना चाहिए और परिग्रह का कुछ परिमाण अवश्य कर लेना चाहिए।