केवलज्ञान होने के पश्चात् अर्हंत भगवान के सर्वांग से एक विचित्र गर्जना रुप ॐकार ध्वनि खिरती है जिसे दिव्यध्वनि कहते हैं। भगवान की इच्छा न होते हुए भी भव्य जीवों के पुण्य से सहज खिरती है पर गणधर देव की अनुपस्थिति में में नहीं खिरती।