मैथुन कर्म से सवथा निवृत्त् वर्णी को आत्मतत्व के उपदेष्टा गुरुओं की प्रीतिपूर्वक अधीनता स्वीकार कर ली गयी है अथवा ज्ञान और आत्मा के विषय में स्वतन्त्रता की गयी प्रवृत्ति को ब्रह्मचर्य कहते है। अनुभूत स्त्री का स्मरण न करने से, स्त्री विषयक कथा के सुनने का त्याग करने से और स्त्री से सटकर सोने व बैठने का त्याग करने से परिपूर्ण ब्रह्मचर्य होता है।