अहिंसा-
अहिंसा का व्यापार बाहर व भीतर दोनों ओर होता है। बाहर में तो किसी भीर छोटे या बडे नीव को अपने मन से या वचन से या काय से किसी प्रकार की भी हीन या अधिक पीडा न पहुँचाना तथा उसका दिल न दुखाना अहिंसा है, और अन्तरंग में रागद्वेष परिणामों से निवृत्त होकर साम्यभाव में स्थित होना अहिंसा है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]