तर्ज—ॐ जय………….
ॐ जय जय गुरुदेवा, स्वामी जय जय गुरुदेवा।
जिनवर के लघुनंदन-२, वीर सिन्धु देवा।।ॐ जय.।।
श्रीचारित्रचक्रवर्ती के, प्रथम शिष्य माने।स्वामी……..
पट्टाचार्य प्रथम बन-२, निज पर को जानें ।।ॐ जय.।।१।।
संघ चतुर्विध के अधिनायक, छत्तिस गुणधारी। स्वामी…….
गुरूपूर्णिमा के दिन जन्मे-२, गुरुपद के धारी ।।ॐ जय.।।२।।
आश्विन वदि मावस को, मरण समाधि हुआ ।स्वामी………
जीवन मंदिर पर तब-२, स्वर्णिम कलश चढ़ा ।।ॐ जय.।।३।।
गुरु आरति से मेरा, आरत दूर भगे। स्वामी ………..
तभी ‘‘चंदनामती’’ हृदय में, आतम ज्योति जगे ।।ॐ जय.।।४।।