तीर्थ प्रयाग जगत में पहला, दीक्षा तीर्थ कहा जाता।
तीर्थंकर प्रभु ऋषभदेव की, दीक्षा से जिसका नाता।।
युग की आदी में ऋषभदेव ने, केशलोंच जहँ किया प्रथम।
जहाँ त्याग प्रकृष्ट किया उसका ही, नाम प्रयाग पड़ा उत्तम।।१।।
उसको वंदन करके प्रयाग की, महिमा का स्तवन करूँ।
प्राचीन तीर्थ को नया रूप, जो मिला उसे मैं नमन करूँ।।
जहाँ वर्तमान में गंगा यमुना, सरस्वती का संगम है।
इसके कारण ही महाकुंभ का, मेला लगता अनुपम है।।२।।
प्राचीन जैन इतिहास अगर, देखो तो समझ में आता है।
प्रभु ऋषभदेव के रत्नत्रय के, संगम की यह गाथा है।।
तुम सुनो यहाँ पर कई एक, घटनाएँ पहली बार घटीं।
उन रोमांचक इतिहासों से, तीरथ प्रयाग की कीर्ति बढ़ी।।३।।
युग का पहला था केशलोंच, पहली दीक्षा थी हुई जहाँ।
कैवल्य भूमि वह प्रथम, प्रथम था समवसरण वहाँ अधर बना।।
नृप वृषभसेन भी दीक्षा लेकर, प्रभु के गणधर प्रथम बने।
आर्यिका की दीक्षा वहीं प्रथमत:, ली थी ब्राह्मी-सुन्दरि ने।।४।।
बस इस प्रकार यह तीर्थ प्रथम, आध्यात्मिकता का केन्द्र बना।
इस भूमी से ही मोक्षमार्ग का, इस कृतयुग में मार्ग चला।।
जिस वृक्ष के नीचे ऋषभदेव ने, दीक्षा लेकर ध्यान किया।
वह अक्षयवट संज्ञा से तीर्थ-प्रयाग का अक्षयधाम हुआ।।५।।
इस नई सहस्राब्दि में उस, तीरथ प्रयाग में काम हुआ।
इक नई भूमि पर तपस्थली-तीरथ का नवनिर्माण हुआ।।
है शहर इलाहाबाद से तेरह, किलोमीटर पर यह तीरथ।
वाराणसि से सौ एक किलो-मीटर दूरी पर है स्थित।।६।।
देखो तो कितनी दूरी से, सुन्दर केलाशगिरी दिखता।
उस इक्यावन फुट ऊँचे गिरि, केलाश पे है मनहर प्रतिमा।।
चौदह फुट के उत्तुंग लाल-वर्णी वृषभेश विराज रहे।
झरने व गुफाओं से संयुत, पर्वत दर्शन का लाभ वरें।।७।।
है मुख्य यहाँ पर आकर्षण, दीक्षा कल्याणक का मंदिर।
उस शांत तपोवन में स्थित, ध्यानस्थ प्रभू प्रतिमा सुन्दर।।
सीढ़ी चढ़कर ऊपर जाओ, कुछ क्षण जिनवर का ध्यान करो।
सांसारिक क्षणभंगुर विषयों से, हटकर मन कुछ शांत करो।।८।।
छह माह योग के बाद प्रभू, आहार हेतु जब निकले थे।
हस्तिनापुरी में एक वर्ष, उपवास बाद वे पहुँचे थे।।
श्रेयांसराज ने इक्षूरस, आहार दिया था प्रथम जहाँ।
उस दिन से ही इस धरती पर, शुभ दानतीर्थ प्रारंभ हुआ।।९।।
दीक्षाकल्याण तपोवन के, दर्शन कर आगे बढ़ते हैं।
इक मंदिर में चढ़ करके, समवसरण का दर्शन करते हैं।।
ये दोनों मंदिर तीरथ की, सार्थकता को दरशाते हैं।
बीचों बिच गिरि कैलाश की यात्रा, कर यात्री हरषाते हैं।।१०।।
इस तीर्थक्षेत्र के परिसर में, इक कीर्तिस्तंभ बना सुन्दर।
उसमें राजित हैं ऋषभदेव, महावीर की प्रतिमाएँ मनहर।।
कैलाशगिरी पर बने बहत्तर, जिनचैत्यालय को वन्दन।
वहाँ गुफा के मंदिर में अतिशयकारी जिनवर को करूँ नमन।।११।।
सब भगवन्तों के दर्शन वंदन, कर कुछ क्षण विश्राम करो।
वहाँ निर्मित सुन्दर अतिथि भवन में, रहकर प्रभु का ध्यान करो।।
है धर्मध्यान के साथ-साथ, वहाँ बने मनोरंजन साधन।
फूलों के उपवन-बाग-बगीचे, मानो करते प्रभु वंदन।।१२।।
श्री गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माताजी ने ही यह बतलाया।
इस दीक्षा तीर्थ प्रयाग का नूतन, परिचय सबको करवाया।।
उनके उपकारों से यह धरती, तीर्थ नये पा जाती है।
‘‘चन्दनामती’’ जिनधर्म की कीर्ति-पताका ये फहराती हैं।।१३।।
दीक्षा केवलज्ञान की, भूमी तीर्थ प्रयाग।
उस ही पावन धाम की, करूँ वंदना आज।।१४।।