

तीर्थंकर अरनाथ! तुम, चक्ररत्न के ईश। 
सिंधुनदी को नीर, स्वर्णझारी भरूँ।
केशर चंदन घिसा, कटोरी में भरा।
चंद्रकिरण सम उज्ज्वल, अक्षत ले लिये।
चंपा जुही गुलाब, पुष्प सुरभित लिये। 
मालपुआ रसगुल्ला, बहु मिष्टान्न ले। 
घृत दीपक ले करूँ, आरती नाथ की। 
अगर तगर वर धूप, अग्नि में खेवते।
श्रीफल पूग बदाम, आम केला लिये।
जल चंदन अक्षत, आदिक वसु द्रव्य ले।





हस्तिनागपुर में हुये, गर्भ जन्म तप ज्ञान।