गृहस्थ धर्म में जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा का श्रद्धान करता हुआ, गृहस्थ हिंसा को छोड़ने के लिए सबसे पहले मद्य, मांस तथा पिप्पल, गूलर, कठूमर, बड़ और पाकर इन आठ (तीन मकार और पांच उदुम्बर फलों) का त्याग कर देवे। जो मनुष्य बिन्दु प्रमाण भी मधु को खाता है, वह सातग्रामों को जलाने के पाप से अधिक पाप को बांध लेता है। मदिरा और मांस तो स्पष्ट ही जीववध के स्थान और पाप की खान हैं, उदुम्बर फलों में भी हमेशा ही त्रस जीव पाये जाते हैं, इसलिए इनका त्याग ही श्रेयस्कर है।
‘‘मद्य मांस, मधु का त्याग, रात्रि भोजन का और पंच उदुम्बर फलों का त्याग ये पांच तथा पंचपरमेष्ठि को नमस्कार (देवदर्शन), जीव दया और पानी छानकर पीना, इस प्रकार से भी किन्हीं शास्त्रों में अष्ट मूलगुण माने गये हैं।’’ श्री समन्तभद्रस्वामी द्वारा प्रतिपादित अष्ट मूलगुण – ‘‘मद्य, मांस, मधु के त्याग सहित पंच अणुव्रतों का पालन करना ये श्रावकों के आठ मूलगुण हैं, ऐसा गणधर आदि मुनियों ने कहा है।’’ श्री अमृतचन्द्रसूरि कहते हैं ‘‘दु:खदायक और पापों के स्थान मद्य, मांस, मधु और पांच उदुम्बर फल इन आठ पदार्थों का परित्याग करके निर्मल बुद्धि वाले पुरुष जिनधर्म के उपदेश को सुनने के पात्र होते हैं।’’ आचार्यकल्प आशाधर जी ने भी इसी को स्पष्ट किया है- ‘‘इस प्रकार से मद्यपान आदि महापापों को जीवनपर्यंत के लिए छोड़कर विशुद्ध बुद्धि वाला श्रावक उपनयन संस्कार (यज्ञोपवीत) से सुसंस्कृत होकर द्विज (गर्भ और व्रत से जन्म लेने वाला) होता हुआ जिनधर्म सुनने के योग्य होता है ।’’ सागारधर्मामृत में पाक्षिक श्रावक को देव पूजा, दान और स्वाध्याय करने का उपदेश दिया है ।