तर्ज—कभी कुण्डलपुर जाना है……
कभी तू बाबा लगता है, कभी तू राजा लगता है,
कभी महाराजा लगता है, स्वयं अधिराजा लगता है।
तू तीर्थ अयोध्या का महाराजा लगता है।
सबका पालक होने से तू बाबा लगता है।।
कभी तू बाबा लगता है, कभी तू राजा लगता है,
कभी महाराजा लगता है, स्वयं अधिराजा लगता है।
जय आदीश्वर, हो बोलो जय आदीश्वर-२, बोलो जय……। टेक.।।
इस धरती पर भोगभूमि का अन्त समय जब आया।
असि मषि आदिक क्रिया बताकर जीवन कला सिखाया।।
तू तीर्थ अयोध्या का महाराजा लगता है।
सबका पालक होने से तू बाबा लगता है।। कभी तू……।।१।।
इक सौ एक पुत्र एवं दो पुत्री तुमने पाई।
सबने दीक्षा ले अपने जीवन में ज्योति जलाई।।
तू तीर्थ अयोध्या का महाराजा लगता है।
सबका पालक होने से तू बाबा लगता है।। कभी तू……।।२।।
पुरी अयोध्या में जन्मे कैलाशगिरी से शिव पाया।
अत: ‘‘चंदनामती’’ जगत ने तुझको शीश नमाया।
तू तीर्थ अयोध्या का महाराजा लगता है।
सबका पालक होने से तू बाबा लगता है।। क
भी तू बाबा लगता है, कभी तू राजा लगता है,
कभी महाराजा लगता है, स्वयं अधिराजा लगता है।
जय आदीश्वर, हो बोलो जय आदीश्वर-२, बोलो जय……।।३।।