सौधर्म आदि पृथक्—पृथक् चार कल्पों और शेष छह युगलों में से प्रत्येक में क्रम से पूर्वोक्त यानविमान होते हैं।।११।।
शस्त्र, भोजन, वस्त्र और बहुत प्रकार के भूषण ये पृथिवीर्नििमत और वैव्रिâयिक भी होते हैं। इनमें से पृथिवीमय स्थिर और वैव्रियिक अस्थिर होते हैं ।।२७५।।
इन्द्रों के विमान कल्पनाम वाले कहे जाते हैं। उनकी चारों दिशाओं में वैडूर्य,रजत,अशोक और अन्तिम मृषत्कसार इन नामों वाले चार विमान जानने चाहिये। ये विमान दक्षिण इन्द्रों के निवास स्थान की चारों दिशाओं में होते हैं।।२७६-२७७।।
रुचक, मन्दर, अशोक और सप्तपर्ण ये चार विमान उत्तर इन्द्रों के निवास स्थानों की चारों दिशाओं में कहे गये हैं ।।२७८।।
उक्तं च (ति.प. ८-३००)- मन्दर पर्वत की प्ररूपणा में (१-२६० व २६२ आदि में) दक्षिण (सौधर्म) इन्द्र के लोकपालों के विमानों के जो नाम कहे गये हैं वे तीन कल्पों में उनके विमानों के नाम जानना चाहिये।।२७९।।
कहा भी है— लान्तव आदि शेष दक्षिण इन्द्रों में स्वयंप्रभ, उत्तम ज्येष्ठशत, अंजन और वल्गु ये प्रधान विमान जानना चाहिये।।१२।।
सौम्य, सर्वतोभद्र, समित और शुभ ये उत्तर में दो कल्पों में लोकपालों के प्रधान विमानों के नाम माने गये हैं ।।२८०।।
कहा भी है—उक्तं च (ति.प.८,३०१-२)- सौम्य, सर्वतोभद्र, सुभद्र और समित ये सब उत्तर इन्द्रों के सोम आदि लोकपालों के प्रधान विमान होते हैं ।।१३।।
उनके विमानों की संख्या का उपदेश कालदोष से नष्ट हो गया है। वे सब लोकपाल उन विमानों में क्रीड़ा किया करते हैं ।।१४।।