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200px]] ”तर्ज—सपने में……” प्रभु गर्भकल्याण में बरसे रतन की धारा रे। कहे धनकुबेर भी, धन्य है भाग्य हमारा रे।।टेक.।। इक पुण्यशालिनी माँ जब, देखे सोलह सपने तब। तीर्थंकर सुत को पाती, निज जन्म धन्य कर पाती।। उस समय पिता का, खुल जाता भण्डारा रे। कहे धनकुबेर भी, धन्य है भाग्य हमारा रे।। प्रभु…।।१।। त्रय ज्ञान सहित तीर्थंकर, आते हैं माँ के गरभ जब। माँ की महिमा बढ़ जाती, वे प्रश्न सहज सुलझातीं।। अज्ञान तिमिर हर देतीं ज्ञान उजारा रे। कहे धनकुबेर भी, धन्य है भाग्य हमारा रे।। प्रभु…।।२।। प्रभु गर्भकल्याण मनाएं, हम भी ऐसा फल पाएं। अब ऐसी माँ से जन्में, जो देखे सोलह सपने।। ‘‘चंदनामती’’ यह उत्सव कितना प्यारा रे। कहे धनकुबेर भी, धन्य है भाग्य हमारा रे।। प्रभु…।।३।।
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