आचार्य, उपाध्याय और साधुओं की वंदना करते समय ‘गुरुवंदना’ पढ़कर नमोऽस्तु करें। आर्यिकाओं को वंदामि तथा ऐलक, क्षुल्लक व क्षुल्लिका को इच्छामि कहकर नमस्कार करें। यह कृतिकर्म सहित देववंदन विधि जैसा कि आगम में वर्णित है। उनके प्रमाण देखिए- श्रावकों की विधिवत् अभिषेकपूर्वक देवपूजा में इसी कृतिकर्म विधि सहित चार भक्तियाँ पढ़ी जाती हैं। यह सम्पूर्ण विधि ‘जम्बूद्वीप पूजांजलि’ पुस्तक में पृष्ठ १७७ से २०६ तक दी गई है। उसमें लिखित विधि से जो पूजा की जाती है, वही श्रावक-श्राविकाओं की सामायिक कहलाती है। जैसा कि भावसंग्रह में कहा है- ‘‘देवपूजां बिना सर्वा दूरा सामायिकी क्रिया।’’ तथा मध्यान्ह व अपराण्ह में सामायिक करने में श्रावक दो भक्ति पढ़कर सामायिक करें। इसमें कृतिकर्म विधि-प्रयोगविधि विस्तार से धवला, जयधवला, मूलाचार आदि ग्रंथों के अनुसार पूर्णरूप से है। वह सामायिक विधि भी ‘जम्बूद्वीप पूजांजलि’ पुस्तक में पृ. ५३० से ५४० तक दी गई है।