अनादिनिधन मूलमंत्र
णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं।
णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।
(श्री गौतम स्वामी विरचित)
१. णमो जिणाणं। २. णमो ओहिजिणाणं। ३. णमो परमोहिजिणाणं। ४. णमो सव्वोहिजिणाणं। ५. णमो अणंतोहिजिणाणं।
६. णमो कोट्ठबुद्धीणं। ७. णमो बीजबुद्धीणं। ८. णमो पादाणुसारीणं। ९. णमोे संभिण्णसोदाराणं। १०. णमोे सयंबुद्धाणं।
११. णमो पत्तेयबुद्धाणं १२. णमो बोहियबुद्धाणं। १३. णमोे उजुमदीणं। १४. णमोे विउलमदीणं। १५. णमोे दसपुव्वीणं।
१६. णमोे चउदसपुव्वीणं। १७. णमोे अट्ठंग-महा-णिमित्त-कुसलाणं। १८. णमो विउव्व-इड्ढि-पत्ताणं। १९. णमोे विज्जाहराणं।
२०. णमोे चारणाणं। २१. णमोे पण्णसमणाणं। २२. णमो आगासगामीणं। २३. णमोे आसीविसाणं। २४. णमोे दिट्ठिविसाण २५. णमोे उग्गतवाणं।
२६. णमोे दित्ततवाणं। २७. णमोे तत्ततवाणं। २८. णमोे महातवाणं। २९. णमो घोरतवाणं। ३०. णमोे घोरगुणाणं।
३१. णमोे घोर परक्कमाणं। ३२. णमोे घोरगुण-बंभयारीणं। ३३. णमोे आमोसहिपत्ताणं। ३४. णमोे खेल्लोसहिपत्ताणं। ३५. णमोे जल्लोसहि पत्ताणं।
३६. णमोे विप्पोसहिपत्ताणं।३७. णमोे सव्वोसहिपत्ताणं।३८. णमोे मणबलीणं।३९. णमोे वचिबलीणं।४०. णमो कायबलीणं।
४१. णमोे खीरसवीणं।४२. णमोे सप्पिसवीणं।४३. णमोे महुरसवीणं।४४. णमोे अमियसवीणं।४५. णमोे अक्खीणमहाणसाणं।
४६. णमोे वड्ढमाणाणं। ४७. णमो सिद्धायदणाणं। ४८. णमो भयवदो महदिमहावीर वड्ढमाण-बुद्धरिसीणो चेदि।
जस्संतियं धम्मपहं णियच्छे, तस्संतियं वेणइयं पउंजे।
काएण वाचा मणसा वि णिच्चं, सक्कारए तं सिरपंचमेण।।१।।
”—शंभु छंद—”
मैं नमूँ जिनों को जो अरहन्, अवधीजिन मुनि को नमूँ नमूँ। परमावधि जिन को नमूँ तथा, सर्वावधि जिन को नमूँ नमूँ।। मैं नमूँ अनंतावधि जिन को, अरु कोष्ठबुद्धि युत साधु नमूँ। मैं नमूँ बीजबुद्धीयुत मुनि, पादानुसारियुत साधु नमूँ।।१।। संभिन्नश्रोतृयुत साधु नमूँ, मैं स्वयंबुद्ध मुनिराज नमूँ। प्रत्येक बुद्ध ऋषिराज नमूँ, पुनि बोधित बुद्ध मुनीश नमूँ।। ऋजुमतिमनपर्यय साधु नमूँ, मैं विपुलमतीयुत साधु नमूँ। मैं नमूँ अभिन्न सुदशपूर्वी, चौदशपूर्वी मुनिराज नमूँ।।२।। अष्टांगमहानिमित्तकुशली, नमूँ नमूँ विक्रियाऋद्धि प्राप्त। विद्याधरऋषि को नमूँ नमूँ, मैं संयत चारणऋद्धि प्राप्त।। मैं प्रज्ञाश्रमण मुनीश नमू, आकाशगामि मुनिराज नमूँ। आशीविषयुत ऋषिराज नमूँ, दृष्टीविषयुत मुनिराज नमूँ।।३।। मैं उग्र तपस्वी नमूँ दीप्ततपि, नमूँ तप्ततपसाधु नमूँ। मैं नमूँ महातपधारी को, अरु घोरतपोयुत साधु नमूँ।। मैं नमूँ घोरगुणयुत साधू, मैं घोरपराक्रम साधु नमूँ। मैं नमूँ घोरगुणब्रह्मचारि, आमौषधि प्राप्त मुनीश नमूँ।।४।। क्ष्वेलौषधि प्राप्त मुनीश नमूँ, जल्लौषधि प्राप्त मुनीश नमूँ। विप्रुष औषधियुत साधु नमूँ, सर्वौषधि प्राप्त मुनीश नमूँ।। मैं नमूँ मनोबलि मुनिवर को, मैं वचनबली ऋद्धीश नमूँ। मैं कायबली मुनिनाथ नमूँ, मैं क्षीरस्रावी साधु नमूँ।।५।। मैं घृतस्रावी मुनिराज नमूँ, मैं मधुस्रावी मुनिराज नमूँ। मैं अमृतस्रावी साधु नमूँ, अक्षीणमहानस साधु नमूँ।। मैं वर्धमान ऋद्धीश नमूँ, मैं सिद्धायतन समस्त नमूँ। मैं भगवन् महति महावीर, श्री वर्धमान बुद्धर्षि नमूँ।।६।। ”-शेर छंद— ” जिसके निकट में धर्मपथ को प्राप्त किया हूँ। उनके निकट ही विनयवृत्ति धार रहा हूँ।। नित काय से, वचन से और मन से उन्हीं को। पंचांग नमस्कार करूँ भक्ति भाव सों।।७।। ”-दोहा—” श्री गौतम गणधर रचित, मंत्र सु अड़तालीस। गणिनी ‘ज्ञानमती’ किया, पद्य नमाकर शीश।।८।। श्री गणधर गुरुदेव को, नमूँ नमूँ शत बार। सर्व ऋद्धि सिद्धी सहित, पाऊँ निजपद सार।।९।।