उच्यते, सुखचिन्तामणौ चतुर्दशी चतुर्दशवं,
एकादश्येकादशवं, अष्टम्यष्टवं, पंचमी पंचकं,
तृतीया त्रिकमेवमुपवासा: एकचत्वारिंशत्।
न कृष्णपक्षशुक्लपक्षगतो नियम:,
केवलां तिथिं नियम्य भवन्तीति उपवासा:।
अस्य व्रतस्य पञ्चभावना: भवन्ति,
प्रत्येकभावनयामभिषेको भवति।
सुखचिन्तामणि व्रत में चतुर्दशियों में चौदह उपवास, एकादशियों के ग्यारह उपवास, अष्टमियों के आठ, पंचमियों के पाँच उपवास, तृतीयाओं के तीन उपवास, इस प्रकार कुल ४१ उपवास करना चाहिए। इस व्रत में कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष का कुछ भी नियम नहीं है, केवल तिथि का नियम है। उपवास के दिन व्रत की विधेय तिथि का होना आवश्यक है। इस व्रत की पाँच भावना होती हैं, प्रत्येक भावना में एक अभिषेक किया जाता है। अभिप्राय यह है कि चौदह चतुर्दशियों के व्रत के पश्चात् एक भावना, ग्यारह एकादशियों के व्रत के पश्चात् एक भावना, आठ अष्टमियों के व्रत के बाद एक भावना, पाँच पंचमियों के व्रत के पश्चात् एक भावना एवं तीन तृतीयाओं के व्रत के पश्चात् एक भावना करनी होती है। प्रत्येक भावना के दिन भगवान का अभिषेक करना होता है।
सुखचिंतामणि व्रत के लिए केवल तिथियों का विधान है। यह व्रत तृतीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी और चतुर्दशी को किया जाता है। प्रथम इस व्रत का प्रारंभ चतुर्दशी से करते हैं, लगातार चौदह चतुर्दशी अर्थात् सात महीने की चतुर्दशियों में चतुर्दशीव्रत पूरा होता है। साथ ही चतुर्दशी व्रत के तीन उपवास हो जाने पर एकादशी व्रत प्रारंभ होता है। जिस एकादशी से व्रत आरंभ किया जाता है, उस दिन भगवान का अभिषेक करते हैं तथा व्रत की भावना भाते हैं। तीन चतुर्दशियों के व्रत के उपरांत एकादशी और चतुर्दशी दोनों व्रत अपनी-अपनी तिथि में साथ-साथ में किये जाते हैं।
तीन एकादशी व्रत हो जाने के पश्चात् अष्टमी व्रत प्रारंभ किया जाता है। जिस दिन अष्टमी व्रत प्रारंभ करते हैं, उस दिन भगवान का अभिषेक समारोहपूर्वक करते हैं। यह सदा स्मरण रखना होगा कि प्रत्येक व्रत के प्रारंभ में अभिषेक १०८ कलशों से किया जाता है। तीन अष्टमी व्रत हो जाने के उपरांत पंचमी व्रत प्रारंभ करते हैं, इसके प्रारंभ करने की विधि पूर्ववत् ही है। चतुर्दशी, एकादशी, अष्टमी और पंचमी ये व्रत एक साथ चलते हैं। दो पंचमी व्रतों के हो जाने पर तृतीया व्रत आरंभ होता है, इस दिन भी वृहद् अभिषेक, पूजन-पाठ आदि धार्मिक कृत्य किये जाते हैं। ये सभी व्रत तीन पक्ष तक अर्थात् तीन तृतीया व्रतो के संपूर्ण होने तक साथ-साथ चलते हैं। तृतीया के दिन ही इन व्रतों की समाप्ति होती है। इस दिन वृहद् अभिषेक समारोहपूर्वक करना चाहिए। उपवास के दिनों में ‘‘ॐ ह्रीं सर्वदुरितविनाशनाय श्रीचतुरवि॔शंतितीर्थंकरेभ्य: नम:।’ इस मंत्र का जाप प्रात:, मध्यान्ह और सायंकाल करना चाहिए। सुखचिंतामणि व्रत निश्चित तिथि में ही सम्पन्न किया जाता है। यदि व्रत की तिथि आगे-पीछे के दिनों में होती है तो व्रत आगे-पीछे किया जाता है। यह व्रत चिंतामणिरत्न के समान सभी प्रकार के सुखों को देने वाला है। भावना के दिन चिंतामणि भगवान पाश्र्वनाथ की पूजा विशेष रूप से की जाती है तथा ‘ॐ ह्रीं सर्वसिद्धिकराय श्री पाश्र्वनाथाय नम:’ इस मंत्र का जाप किया जाता है।
इस व्रत में १४ चतुर्दशी, ११ एकादशी, ८ अष्टमी, ५ पंचमी एवं ३ तृतीया ऐसे ४१ व्रत करने होते हैं। यहाँ पर कार्तिक से व्रत प्रारंभ करने पर क्रम से चार्ट दिया जा रहा है। यदि अन्य किसी माह से प्रारंभ करें तो उस माह से चार्ट बना लेवें।
विधि-कार्तिक से वैशाख तक करना है।
१.कार्तिक कृष्णा १४
२.कार्तिक शुक्ला १४
३.मगसिर कृष्णा १४
४.मगसिर शुक्ला ११,१४
५.पौष कृष्णा ११,१४
६.पौष शुक्ला ११,१४
७.माघ कृष्णा ८,११,१४
८.माघ शुक्ला ८, ११, १४
९.फाल्गुन कृष्णा ८, ११, १४
१०.फाल्गुन शुक्ला ५, ८, ११, १४, १४
११.चैत्र कृष्णा ५, ८, ११, १४
१२.चैत्र शुक्ला ३, ५, ८, ११, १४
१३.वैशाख कृष्णा ३, ५, ८, ११, १४
१४.वैशाख शुक्ला ३, ५, ८, ११, १४
इस व्रत को किसी भी माह से शुरू कर सकते हैं।