प्रो0 टीकमचन्द जैन प्रतिष्ठाचार्य एम084,नवीन शाहदरा, दिल्ली
ज्योतिष मानवता के इतिहास में ज्ञात एक प्राचीनतम विज्ञान है। प्राचीन जैनागम में ज्योतिष के विविध विषयों का विस्तृत विवरण उपलब्ध है। भारतीय ज्योतिष का उद्देश्यम मानव का आत्मकल्याण और शुभाशुभ का निर्णय करते हुए भविष्य् का संकेत कर देना है। लोक व्यवहार के लिए क्रियात्मक रूप से इसके दो सिद्धान्त हैं-
(1) गणित
(2) फलित। भारतीय दर्शन में बताया गया है कि मानव का वर्तमान जीवन पूर्व जीवन से बंधा हुआ है। पूर्व जीवन में इसके जो भी कार्य रहे हैं उसी का परिणाम मानव को इस जीवन में भोगना पड़ता है। इसी प्रकार मानव इस जीवन में जो कुछ कार्य करता है अथवा भावनाएं व कामनाएं करता है उनका परिणाम आगे के जीवन में उसे भुगतना पड़ता है। ज्योतिष के माध्यम से यह ज्ञात किया जा सकता है कि इस मानव का पूर्व जीवन किस प्रकार का था, इस जीवन में यह जो कुछ भोग रहा है उसके पीछे कौन से संचित कर्म थे जिसकी वजह से इसको इस जीवन में अनुकूल या प्रतिकूल फल भोगना पड़ रहा है। साथ ही यह किस प्रकार के कार्य करे जिससे इसके आगे का जीवन पूर्णतया अनुकूल एवं संतुलित बना रहे। अशुभ ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव को मंत्र आराधना, अनुष्ठाहन आदि के द्वारा कम किया जा सकता है। इसी तरह किसी इच्छित कार्य को सफलतापूर्वक सम्पन्न करने हेतु उसके शुरू करने के सही समय का निर्धारण किया जाता है जिसका निर्धारण मुहूर्तशास्त्र के नियमों के अनुसार होता है जिसमें पंचांग में वर्णित पांचों अंगों, उस व्यक्ति की राशि और उसकी विंशोत्तिरी दशा आदि को ध्यान में रखकर सही मुहूर्त का निर्धारण किया जाता है। सामान्य जिज्ञासु बहुप्रचलित शब्द पंचांग के बारे में जानना चाहता है। पंचांग शब्द पंच़अंग से मिलकर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ पांच अंग होता है। किसी भी महत्वपूर्ण कार्य को प्रारम्भ करने के लिए उत्त म समय ज्ञात करना इन्ही पांचों अंगों पर निर्भर है। ये पांच अंग हैं- तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण।
(1)तिथि- चन्द्र मास एक अमावस्या के अंत से शुरू होकर दूसरे अमावस्या के अंत तक रहता है। अमावस्या के दिन सूर्य एवं चन्द्र का भोगांश बराबर होता है। इन दोनों ग्रहों के भोगांश में अंतर का बढ़ना ही तिथि को जन्म देता है।तिथित्र चन्द्रमा का भोगांश -सूर्य का भोगांश /12
(2) वार- सप्ताह का एक दिन है और इस दिन की गणना उस दिन के स्वामी का निर्धारण करने के लिए की जाती है। प्रत्येक वार एक ग्रह से संबंधित होता है। जैसे- रविवार सूर्य से संबंधित तथा सोमवार चन्द्र ग्रह से संबंधित होता है।
(3) नक्षत्र – 360 अंशों का भचक्र 27 नक्षत्रों में विभाजित है। एक नक्षत्र का भोगांश 13 अंश 20 मिनट है। पंचांग की गणना में चन्द्र के नक्षत्र का विशेष महत्व है जिसे जन्म नक्षत्र कहा जाता है। इसी से जन्म के समय शेष भोग्य दशा की भी गणना होती है और विंशोत्तकरी दशा की गणना की जाती है।
(4) योग- योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना। कुल 27 योग हैं जो चन्द्र एवं सूर्य के भोगांष के समन्वय से बनते हैं। योग के नाम से मालूम हो जाता है कि यह शुभ अथवा अशुभ योग है। योग ज्ञात करने के लिए सूर्य एवं चन्द्र का भोगांश जोड़कर 13 डिग्री 20 मिनट से भाग देने पर जो भागफल प्राप्त हो उसमें 1 जोड़ने से जो संख्या आये वही उस समय का योग है। कुल 27योगों के नाम निम्न प्रकार हैं | योगोंकेनाम –
उपरोक्त योगों में से क्रम संख्या 1, 6, 9, 10, 13, 15, 17, 19 और 27 वाले योग अशुभ हैं।
(5) करण- एक तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं। करणत्र चन्द्र का भोगांश-सूर्य का भोगांश /6 डिग्री। शुक्ल पक्ष एवं कृश्ण पक्ष की तिथियों के कुल 60 करण होते हैं। जिनके नाम निम्न प्रकार हैं-
(1) बव !! (4) तैतिल!! (7)विश्टि (10)नाग (2) बालव (5) गर (8) शकुनि(11) किन्तुघ्न (3) कौलव(6)वणिज (9) चतुष्पद किन्तु घ्न से गणना शुरू करने पर पहले 7 करण आठ बार क्रम में पुनरावृत्ति होते हैं। अन्त में शेष तीन करण आते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि अन्त के चार करण स्थिर हैं जबकि पहले 7 करणों की पुनरावृत्ति आठ बार होती है।
राशियाँ- राशिचक्र या भचक्र के 360 अंशों को 12 भागों में विभक्त करें तो 30-30 अंश की 12 राशियाँ प्राप्त होंगी। सूर्य और चन्द्रमा को एक एक राशि तथा मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि ग्रहों को दो दो राशियों का स्वामित्व प्राप्त है। राहू और केतु छाया ग्रह होने की वजह से किसी राशि के स्वामी नहीं माने गये हैं। राशियों के हिन्दी और अंग्रेजी नाम, उनका अंशों में माप और उनके स्वामी ग्रहों के नाम निम्न सारणी में दिये गये हैं-
राशिसं !! हिन्दीनाम !!अंग्रेजीनाम !!अंशात्मकविस्तार !! स्वामीग्रह 1 मेष Aries 0-30 मंगल – 2 वृष Taurus 30-60 शुक्र 3 मिथुन Gemini 60-90 बुध 4 कर्क Cancer 90-120 चन्द्र 5 सिंह Leo 120-150 सूर्य 6 कन्या Virgo 150-180 बुध 7 तुला Libra 180-210 शुक्र 8 वृश्चिक Scorpio 210-240 मंगल 9 धनु Sagittarius 240-270 बृहस्पति 10 मकर Capricorn 270-300 शनि 11 कुभं Aquarius 300-330 शनि 12 मीन Pisces 330-360 बृहस्पति ताराओं का समुदाय नक्षत्र कहलाता है। सम्पूर्ण आकाष को 27 भागों में विभाजित कर प्रत्येक भाग का अधिपति एक नक्षत्र मान लिया गया है। प्रत्येक नक्षत्र को 4 चरणों में विभाजित किया गया है। अग्रलिखित सारणी में नक्षत्रों के नाम, स्वामी ग्रह तथा दषा अवधि का वर्णन किया गया है। इसके आधार पर जातक की विंशोत्तनरी दशा ज्ञात हो सकती है। हर ग्रह को तीन नक्षत्रों का स्वामित्व एवं निष्चित वर्श दिये गये हैं जिनका योग 120 वर्श है। विंशोत्ततरी दशा घटनाओं के समय निर्धारण में बड़े पैमाने पर सफल रही है। राशिचक्र के 27 भाग करने पर 13 अंश 20 मिनट का एक भाग नक्षत्र कहलाता है। प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण होते हैं (13 अंश 20 मिनट) तथा कुल मिलाकर 27 नक्षत्रों के 108 पद या चरण होते हैं इसलिए भी 108 की संख्या मंत्रजप आदि में प्रयुक्त होती है। जन्म समय में चन्द्रमा के भोगांश या अन्य शब्दों में चन्द्रमा का अधिष्ठित नक्षत्र ही जन्मकालीन विंशोत्तारी दशा का निर्धारण करता है। नक्षत्र के गतांश, भुक्त दशा का तथा नक्षत्र के भोगे जाने वाले अंश भोग्य दशा का निर्धारण करते हैं। भोग्य दशा ही जन्मकालीन दषा षेश कही जाती है। जन्म नक्षत्र के स्वामी से प्रारम्भ हुई दशा में आगे दशाओं का क्रम निष्चित है। दशाओं का क्रम और दशा वर्ष नीचे सारणी में दिये गये हैं।-
|उपरोक्त सारणी के आधार पर निश्चित गणितीय सूत्रों से महादषाए अंतर्दषाए प्रत्यंतर दषाए सूक्ष्म दषा और प्राण दषा का सही निर्धारण कर उस व्यक्ति के सम्बन्ध में अनुकूलध प्रतिकूल समय को ज्ञात किया जा सकता है। ग्रहों के प्रतिकूल प्रभाव को कम करने और अनुकूल प्रभाव को वृद्धिंगत करने के लिए ईश्वर आराधनाए मंत्र आराधनाए अनुष्ठान आदि किये जाने चाहिए ताकि प्रतिकूल समय में भी परिणामों में समता बनी रहे। ज्योतिष को ज्योतिषास्त्र भी कहा जाता है। यह ऐसा विज्ञान है जो प्रकाष देने मेंए व्यक्ति के भविश्य में झांकने में सहायक बनता है। सही समय अर्थात् मुहूर्त का निर्धारण कर यदि कार्य प्रारम्भ किया जाए तो उसकी पूर्णता और सफलता निष्चित हो जाती है। ज्योतिषीय फलित तभी सही बैठते हैं जबकि ज्योतिषशास्त्र का पूर्ण ज्ञान हो और ज्योतिषीय नियमों के आधार पर ही निःस्वार्थ भाव से गणना की जानी चाहिए ।