
(ज्ञानमती माताजी के प्रवचन)
भव्यात्माओं! इस भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड में चतुर्थकाल में हमेशा २४ तीर्थंकरों का अवतार होता रहता है। कोई भी महापुरुष तीर्थंकर के पादमूल में रहकर दर्शन विशुद्धि आदि सोलहकारण भावनाओं को भाते हैं और उसके प्रसाद से तीर्थंकर प्रकृति का बंध करके स्वर्गों में देव पद को प्राप्त कर लेते हैं।
| # ऐरावत हाथी | # बैल |
| # सिंह | # हाथियों द्वारा अभिषिक्त होती हुई लक्ष्मी |
| # दो मालाएं | # चन्द्रमा |
| # उगता हुआ सूर्य | # मीन युगल |
| # जल से भरे दो कलश | # कमल सहित सरोवर |
| # महासमुद्र | # सुवर्णमय सिंहासन |
| # देवविमान | # नागेन्द्र भवन |
| # महारत्नराशि | # निर्धूम अग्नि। |
| १. मुनि | २. कल्पवासिनी देवियाँ |
| ३. आर्यिकाएं | ४. ज्योतिषी देवों की देवियाँ |
| ५. व्यंतर देवों की देवियाँ | ६. भवनवासी देवों की देवियाँ |
| ७. भवनवासी देव | ८. व्यंतर देव |
| ९. ज्योतिषी देव | १०.कल्पवासी देव |
| ११. मनुष्य और | १२. तिर्यंच |
