जम्बूद्वीप के पूर्वविदेह में सीमंधर स्वामी और युगमंधर स्वामी आज भी समवसरण में विराजमान हैं अत: इन्हें विद्यमान या विहरमाण कहते हैं। जंबूद्वीप के पश्चिम विदेह में बाहुस्वामी और सुबाहुस्वामी हैं। पूर्वधातकी के विदेहों में क्रमश: चार तीर्थंकर एवं पश्चिम धातकी खंड के विदेहों में क्रमश: आगे के चार तीर्थंकर, इसी प्रकार पूर्व पुष्करार्ध द्वीप के विदेहों में आगे के चार तीर्थंकर एवं पश्चिम पुष्करार्ध के विदेह क्षेत्रों में चार तीर्थंकर, ऐसे बीस तीर्थंकर आज भी विद्यमान हैं। इनके मंत्रों का जाप्य करके व्रत विधि संपन्न होती है। इसमें भी तिथि का कोई नियम नहीं है। उत्कृष्ट विधि उपवास, मध्यम विधि अल्पाहार और जघन्य विधि एकाशन है।
व्रत के दिन तीर्थंकर प्रतिमा का पंचामृत अभिषेक, विद्यमान बीस तीर्थंकर पूजा आदि करके व्रत के उद्यापन में बीस तीर्थंकर प्रतिमा विराजमान कराना, २०-२० ग्रंथ आदि दान देना, २०-२० फल आदि बीस श्रावकों को देना आदि यथाशक्ति दान देकर व्रत समापन करें। व्रत की पूर्णता पर जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर, दहीगाँव आदि जाकर बीस तीर्थंकर भगवंतों का दर्शन पूजन करके जीवन धन्य करें।
समुच्चय मंत्र—
ॐ ह्रीं श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यो नम:।
प्रत्येक मंत्र—
१. ॐ ह्रीं श्री सीमंधरनाथ जिनेन्द्राय नम:। २.ॐ ह्रीं श्रीयुगमंधंरनाथ जिनेन्द्राय नम:। ३. ॐ ह्रीं श्री बाहुनाथ जिनेन्द्राय नम:। ४.ॐ ह्रीं श्री सुबाहुनाथ जिनेन्द्राय नम:। ५.ॐ ह्रीं श्री संजातकनाथ जिनेन्द्राय नम:। ६.ॐ ह्रीं श्री स्वयंप्रभनाथ जिनेन्द्राय नम:। ७.ॐ ह्रीं श्री ऋषभानननाथ जिनेन्द्राय नम:। ८.ॐ ह्रीं श्री अनंतवीर्यनाथ जिनेन्द्राय नम:। ९.ॐ ह्रीं श्री सूरिप्रभनाथ जिनेन्द्राय नम:। १०.ॐ ह्रीं श्री विशालकीर्तिनाथ जिनेन्द्राय नम:। ११.ॐ ह्रीं श्री वङ्काधरनाथ जिनेन्द्राय नम:। १२.ॐ ह्रीं श्री चंद्रानननाथ जिनेन्द्राय नम:। १३.ॐ ह्रीं श्री चंद्रबाहुनाथ जिनेन्द्राय नम:। १४.ॐ ह्रीं श्री भुजंगमनाथ जिनेन्द्राय नम:। १५.ॐ ह्रीं श्री ईश्वरनाथ जिनेन्द्राय नम:। १६.ॐ ह्रीं श्री नेमीप्रभनाथ जिनेन्द्राय नम:। १७.ॐ ह्रीं श्री वीरसेननाथ जिनेन्द्राय नम:। १८.ॐ ह्रीं श्री महाभद्रनाथ जिनेन्द्राय नम:। १९.ॐ ह्रीं श्री देवयशोनाथ जिनेन्द्राय नम:। २०.ॐ ह्रीं श्री अजितवीर्यनाथ जिनेन्द्राय नम:।