(जैनेन्द्र व्रत कथा संग्रह मराठी पुस्तक के आधार से)
चैत्र मास आदि बारह मास में से किसी भी महीने में जिस दिन ‘अमृतसिद्धि योग’ हो उस दिन यह व्रत करना है। ऐसे पाँच ‘अमृत’ सिद्धियोग के दिन पाँच व्रत करना है। इस व्रत में ‘अमृतसिद्धियोग’ के दिन उपवास करके जिनमंदिर में भगवान शांतिनाथ का पंचामृत अभिषेक करके शांतिनाथ पूजा करके २४ घंटे का अखण्ड दीपक जलावें। मंत्र-ॐ ह्रीं अर्हं गरुडयक्ष-महामानसीयक्षी सहिताय श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय नम:। (सुगंधित पुष्पों से १०८ बार मंत्र जपें)
पुन: महामंत्र की माला फेरें व भगवान शांतिनाथ का जीवन चरित्र पढ़ें। यदि उपवास की शक्ति नहीं हो तो एक बार भोजन करें, उसमें मात्र पाँच वस्तु ही लेवें। जैसे एक धान्य-गेहूँ या चावल आदि, एक रस, दूध या नमक आदि, एक फल, एक सब्जी या दो सब्जी।
यह व्रत ‘अमृतसिद्धियोग’ के दिन ही किया जाता है। यह ‘अमृतसिद्धियोग’ पंचांग से या विद्वान से समझना चाहिए।
उद्यापन में ‘शांतिनाथ विधान’ करें। शुक्लपक्ष सोलह दिन का जब हो तो विधिवत् १६ दिन का शांति विधान का अनुष्ठान करके जिनवाणी पूजा, गुरुपूजा आदि करके यथाशक्ति शास्त्रदान आदि देवें। १६-१६ उपकरण आदि देवें तथा भगवान शांतिनाथ की जन्मभूमि हस्तिनापुर और निर्वाणभूमि सम्मेदशिखर की वंदना करें। इस व्रत का फल लौकिक अभ्युदय के साथ-साथ परम्परा से शाश्वत शांति अर्थात् परमात्मपद की प्राप्ति होती है। विशेष-जैनी जियालाल पंचांग में ‘‘अमृतसिद्धियोग’’ की तिथियाँ प्रकाशित हैं उनसे देखें अथवा किन्हीं ज्योतिषाचार्य से जानकारी कर लेवें।