आषाढ़ शु. १३ को एक भुक्ति-एकाशन करके चतुर्दशी को उपवास करें। जिनमंदिर में श्री ऋषभदेव का महाभिषेक-पंचामृताभिषेक करके पूजा करें। पूजा में निम्न मंत्रों को पढ़ें-
मंडल पर छह कोठे बनावें। उन पर पान रखें, उन पर यह पूजा करें। पृथक्-पृथक् छह पान पर यह पूजा छह बार करें।
ॐ ह्रीं षट्कर्मक्रियाचरणलोकोपदेशक श्री ऋषभदेव! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं षट्कर्मक्रियाचरणलोकोपदेशक श्री ऋषभदेव! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं षट्कर्मक्रियाचरणलोकोपदेशक श्री ऋषभदेव! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। अथाष्टकं
ॐ ह्रीं षट्कर्मक्रियाचरणलोकोपदेशक श्रीऋषभदेवाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं षट्कर्मक्रियाचरणलोकोपदेशक श्रीऋषभदेवाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं षट्कर्मक्रियाचरणलोकोपदेशक श्रीऋषभदेवाय अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं षट्कर्मक्रियाचरणलोकोपदेशक श्रीऋषभदेवाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं षट्कर्मक्रियाचरणलोकोपदेशक श्रीऋषभदेवाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं षट्कर्मक्रियाचरणलोकोपदेशक श्रीऋषभदेवाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं षट्कर्मक्रियाचरणलोकोपदेशक श्रीऋषभदेवाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं षट्कर्मक्रियाचरणलोकोपदेशक श्रीऋषभदेवाय फलं निर्वपामीति स्वाहा।
ॐ ह्रीं षट्कर्मक्रियाचरणलोकोपदेशक श्रीऋषभदेवाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
पुन: श्रुत-गुरु, यक्ष, यक्षी आदि की पूजा करके यह जाप्य करें- मंत्र-ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्हं षट्कर्मक्रियाचरणलोकोपदेशकश्रीऋषभदेवतीर्थंकराय गोमुखयक्ष चक्रेश्वरी यक्षीसहिताय नम: स्वाहा। (सुगंधित पुष्पों से १०८ बार मंत्र जपें)
पुन: सहस्रनाम पढ़कर णमोकार महामंत्र की एक माला करें।
चतुर्दशी का उपवास करके पूर्णिमा को इसी प्रकार पूजा करके पारणा-एकाशन करें। पुन: श्रावण कृष्णा प्रतिपदा से षष्ठी तक पूर्वोक्त विधि से मंडल बनाकर पूजा विधि करते रहें एवं छहों दिन एकाशन-एक भुक्ति-एक बार भोजन करें। इस व्रत में एक बार भोजन में छह वस्तुओं से अधिक वस्तु नहीं लेवें। जैसे कि एक धान, एक फल, एक रस, एक सब्जी, मसाला में जीरा और धनिया। ऐसे ही कोई भी छह वस्तुएँ छह दिन तक भोजन में ग्रहण करना है। प्रतिदिन भगवान ऋषभदेव का चरित्र पढ़ें।
अर्थात् यह व्रत त्रयोदशी से षष्ठी तक इस प्रकार ९ दिन का है, इसमें चतुर्दशी और एकम् का उपवास करना है तथा शेष सात दिन एकाशन करना है।
इस प्रकार छह वर्ष तक यह व्रत विधिवत् करके उद्यापन में श्री ऋषभदेव की प्रतिमा प्रतिष्ठित कराकर विराजमान करें। चतुर्विध संंघों को आहारदान, ग्रंथदान आदि देकर छह-छह उपकरण मंदिरों में या तीर्थों पर भेंट करें। छह तीर्थों की यात्रा करें। कम से कम अयोध्या जो कि युग की आदि में इन षट्क्रियाओं की उद्गमस्थली है उसके दर्शन करके प्रयाग-इलाहाबाद में श्री तीर्थंकर ऋषभदेव दीक्षाभूमि-केवलज्ञानभूमि के दर्शन अवश्य करें।
इस व्रत को करने वाले सर्व क्रियाओं में अग्रणी होकर विद्या, वाणिज्य में विशेष सफलता प्राप्त कर परम्परा से इन क्रियाओं के उपदेष्टा ऐसे तीर्थंकर पद को प्राप्त कर सकते हैं।