संसार में जितने भी सुख हैं, पुत्रप्राप्ति, सौभाग्य, संपत्ति, आदि भी धार्मिक व्रतों के प्रभाव से प्राप्त होते हैं। सौभाग्यवती महिला पुत्र-पुत्री-संतान सुख की प्राप्ति हेतु व्रत करने की इच्छुक हैं। वे तीर्थंकर भगवन्तों की माता की आराधना करते हुए व्रत करें। ये तीर्थंकर की माता इन्द्रों के द्वारा भी पूज्य मानी गई है अत: इनकी पूजा वंदना में गृहस्थों के लिए कोई दोष नहीं है प्रत्युत् गुण ही है।
व्रत की विधि-
व्रत करने में तिथि का कोई नियम नहीं है अपनी सुविधा से किसी भी अष्टमी, चतुर्दशी आदि तिथि में ये व्रत किये जा सकते हैं। व्रत के दिन मंदिर में उन-उन तीर्थंकर भगवन्तों की प्रतिमा का अभिषेक करके उन-उनकी पूजा करके पुन: उन-उन भगवान की माता की पूजा करें। अनंतर जाप्य करें। इस व्रत में चौबीस व्रत करना है। व्रत के दिन उत्तम विधि उपवास, मध्यम अल्पाहार एवं जघन्य विधि एकाशन-एक बार शुद्ध भोजन करना है। प्रत्येक व्रत के पृथक्-पृथक् मंत्र- १. ॐ ह्रीं श्रीऋषभदेवजननी मरुदेवीमात्रे नम:। २. ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजननी विजयादेवीमात्रे नम:। ३. ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथजननी सुषेणादेवीमात्रे नम:। ४. ॐ ह्रीं श्रीअभिनंदननाथजननी सिद्धार्थादेवीमात्रे नम:। ५. ॐ ह्रीं श्रीसुमतिनाथजननी सुमंगलादेवीमात्रे नम:। ६. ॐ ह्रीं श्रीपद्मप्रभजननी सुसीमादेवीमात्रे नम:। ७. ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजननी पृथ्वीषेणादेवीमात्रे नम:। ८. ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजननी लक्ष्मणादेवीमात्रे नम:। ९. ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदंतनाथजननी जयरामामात्रे नम:। १०. ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजननी सुनन्दादेवीमात्रे नम:। ११. ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजननी विपुलानंदामात्रे नम:। १२. ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यनाथजननी जयावतीमात्रे नम:। १३. ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजननी अर्यश्यामामात्रे नम:। १४. ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजननी लक्ष्मीमतीमात्रे नम:। १५. ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजननी सुप्रभादेवीमात्रे नम:। १६. ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथजननी ऐरादेवीमात्रे नम:। १७. ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजननी श्रीकांतामात्रे नम:। १८. ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजननी श्रीमित्रसेनामात्रे नम:। १९. ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजननी श्रीप्रभावतीमात्रे नम:। २०. ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजननी श्रीसोमादेवीमात्रे नम:। २१. ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजननी श्रीवर्मिलादेवीमात्रे नम:। २२. ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथजननी श्रीशिवादेवीमात्रे नम:। २३. ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजननी श्रीवामादेवीमात्रे नम:। (श्री ब्राह्मीदेवी मात्रे) २४. ॐ ह्रीं श्रीमहावीरस्वामिजननी श्रीत्रिशलादेवीमात्रे नम:।
व्रत पूर्ण करके उद्यापन में तीर्थंकर भगवन्तों की जन्मभूमियों की वंदना करें। सोलह जन्मभूमियों के नाम १. अयोध्या (फेजाबाद-उ.प्र.) –श्री ऋषभदेव भगवान,श्री अजितनाथ भगवान, श्री अभिनंदननाथ भगवान, श्री सुमतिनाथ भगवान, श्री अनंतनाथ भगवान २. श्रावस्ती (बहराइच-उ.प्र.) –श्री संभवनाथ भगवान ३. कौशाम्बी (उ.प्र.) –श्री पद्मप्रभु भगवान ४. वाराणसी (उ.प्र.) –श्री सुपार्श्वनाथ भगवान, श्री पार्श्वनाथ भगवान ५. चन्द्रपुरी (वाराणसी) उ.प्र. –श्री चन्द्रप्रभु भगवान ६. काकन्दी (देवरिया नि.-गोरखपुर) उ.प्र.-श्री पुष्पदंतनाथ भगवान ७. भद्रिकापुरी (भद्दिलपुर) –श्री शीतलनाथ भगवान ८. सिंहपुरी (सारनाथ) उ.प्र. –श्री श्रेयांसनाथ भगवान ९. चम्पापुरी (भागलपुर-बिहार) –श्री वासुपूज्यनाथ भगवान १०. कम्पिलपुरी (फर्रुक्खाबाद-उ.प्र.) –श्री विमलनाथ भगवान ११. रत्नपुरी (फेजाबाद-उ.प्र.) –श्री धर्मनाथ भगवान १२. हस्तिनापुर (मेरठ-उ.प्र.) –श्री शांतिनाथ भगवान, श्री कुन्थुनाथ भगवान, श्री अरनाथ भगवान १३. मिथिलापुरी –श्री मल्लिनाथ भगवान, श्री नमिनाथ भगवान १४. राजगृही (नालंदा-बिहार) –श्री मुनिसुव्रतनाथ भगवान १५. शौरीपुर (बटेश्वर-उ.प्र.) –श्री नेमिनाथ भगवान १६. कुण्डलपुर (नालंदा-बिहार) –श्री महावीर भगवान
इस व्रत को करने वाली महिलाएँ वंध्यापने को दूरकर पुत्र-पुत्री के संतानसुख को प्राप्त कर अपनी वंश परम्परा को वृद्धिंगत करेंगी। संतान धर्मनिष्ठ, सदाचारी, कुल के दीपक होंगे। माता-पिता की सेवा-शुश्रूषा में कुशल होंगे। उस घर से परम्परा से मोक्षमार्ग चलता रहेगा।