हस्तिनापुर में आज से लगभग १२ लाख वर्ष पूर्व श्री अकंपनाचार्य आदि सात सौ मुनियों का उपसर्ग दूर हुआ था। श्री विष्णुकुमार महामुनि ने विक्रियाऋद्धि के प्रभाव से उज्जयिनी से आकर बलि आदि मंत्रियों के द्वारा किये गये उपसर्ग को दूर कर मुनियों की रक्षा की थी, वह तिथि ‘श्रावण शुक्ला पूर्णिमा’ थी, तभी से आज तक यह तिथि ‘रक्षाबंधन’ पर्व के नाम से सारे भारत में विख्यात है। भले ही आज यह पर्व मात्र भाई-बहन के पर्व के रूप में प्रसिद्ध है, फिर भी गुरुओं की रक्षा ही इसका मुख्य उद्देश्य है।
व्रत की विधि-
श्रावण शु. १३ से पूर्णिमा तक ३ दिन यह व्रत करना चाहिए। त्रयोदशी को एकाशन करके चतुर्दशी को उपवास करें। व्रत के दिन मंदिर में पंचपरमेष्ठी की प्रतिमा का पंचामृत अभिषेक करके, यदि श्री अकंपनाचार्य और विष्णुकुमार मुनियों की प्रतिमाएं हों, तो उनका अभिषेक करें या युगल मुनियों के चरणों का अभिषेक करके पंचपरमेष्ठी की पूजा, श्री अकंपनाचार्य व विष्णुकुमार मुनि की पूजा करें। निम्न जाप्य करें- ॐ ह्रीं श्री अकंपनाचार्यादि-सप्तशतमुनिभ्यो नम:। अथवा ॐ ह्रीं अर्हं महोपसर्गविजयि श्रीअकंपनाचार्यादिसप्तशतमुनिभ्यो नम:।
व्रतों के दिन रक्षाबंधन की एवं श्री विष्णुकुमार मुनि की कथा अवश्य पढ़ें। पुन: श्रावण शुक्ला पूर्णिमा के दिन हस्तिनापुर आकर श्री अकंपनाचार्य और श्री विष्णुकुमार महामुनियों की पूजा करके वहाँ पर विराजमान साधुओं को आहार दान देकर स्वयं खीर आदि का भोजन लेकर एकाशन करें अर्थात् एक बार भोजन करें एवं धर्मध्वज स्तंभ में रक्षासूत्र बांधें तथा साधर्मियों को धर्म की एवं धर्मायतन की रक्षा हेतु रक्षासूत्र बांधें। उपर्युक्त दो में से एक जाप्य करके-ॐ ह्रीं श्री विष्णुकुमार महामुनये नम: मंत्र की भी जाप्य करें। पुन: भाद्रपद कृ. प्रतिपदा को व्रत पूर्ण करें। इस प्रकार यह व्रत सात वर्ष तक करके यथाशक्ति उद्यापन करें। इन मुनियों के चरण बनवाकर या प्रतिमा बनवाकर विधिवत् प्रतिष्ठा कराकर मंदिर में विराजमान करें।
इस व्रत के प्रभाव से अनेक प्रकार की दुर्घटना,रेल, मोटर आदि के एक्सीडेंट आदि का निवारण होगा, अकाल मृत्यु टलेगी। अनेक प्रकार के कष्ट दूर होंगे और सब प्रकार से सुख, शांति, यश, संपत्ति, संतति आदि की वृद्धि होगी।