विषापहार स्तोत्र श्री ऋषभदेव स्तोत्र है। यह श्री धनंजय कवि की रचना है। इस स्तोत्र के रचते ही उनके पुत्र का सर्पविष उतर गया था। इसलिए विषापहार यह इसका सार्थक नाम है। इसमें ४० व्रत किए जाते हैं भक्तामर के समान इन व्रतों को करना चाहिए।
समुच्चय मंत्र-
ॐ ह्रीं अर्हं सर्वविषापहारिणे आदितीर्थंकर श्री ऋषभदेवाय नम:।