तीनलोक में अकृत्रिम-शाश्वत जिनमंदिर आठ कोटि-करोड़, छप्पनलाख, सत्तानवे हजार, चार सौ इक्यासी होते हैं। इनमें से अधोलोक में ७ करोड़ ७२ लाख जिनमंदिर हैं। मध्यलोक में ४५८ जिनमंदिर हैं और ऊध्र्वलोक में ८४ लाख ९७ हजार २३ जिनमंदिर हैं। व्यन्तर देवों के असंख्यात जिनमंदिर हैं एवं ज्योतिर्वासी देवों के भी असंख्यात जिनमंदिर हैं। इन दोनों की संख्या न कर सकने से उपर्युक्त मंदिरों की गणना में इनकी संख्या नहीं आ पाती है।
यहाँ तीनों लोकों के अकृत्रिम जिनमंदिरों के ४८ व्रत हैं। उत्कृष्ट विधि उपवास है एवं जघन्यविधि एकाशन-एक बार शुद्ध भोजन करके व्रत करने की है। इस व्रत में तिथि का कोई नियम नहीं है।
व्रत के दिन जिनप्रतिमा का पंचामृत अभिषेक करके तीन लोक यंत्र का अभिषेक करके त्रैलोक्य पूजा करना चाहिए। व्रत पूर्णकर उद्यापन में जिनप्रतिमा की प्रतिष्ठा कराना, ४८ ग्रंथ मुनि, आर्यिका आदि को देना आदि यथाशक्ति दान करना चाहिए।
इनमें अधोलोक के भवनवासी देवों के दश भेदों की अपेक्षा दश व्रत हैं। मध्यलोक के १२ व्रत एवं व्यन्तर देवों के ८ भेदों की अपेक्षा ८ व्रत हैं। ज्योतिषीदेवों के ५ भेदों की अपेक्षा ५ व्रत हैं। ऊध्र्वलोक के १२ व्रत हैं एवं एक सिद्धशिला का ऐसे १०±१२±८±५±१२±१·४८ हो जाते हैं। इनका स्पष्टीकरण-
भवनवासी के असुरकुमारेन्द्र के ६४ लाख जिनमंदिर का -१
नागकुमार के ८४ लाख मंदिर का -१
सुपर्णकुमार के ७२ लाख मंदिर का -१
उदधिकुमार के ७६ लाख मंदिर का -१
स्तनित कुमार के ७६ लाख मंदिर का -१
विद्युत्कुमार के ७६ लाख मंदिर का -१
दिक्कुमार के ७६ लाख मंदिर का -१
अग्नि कुमार के ७६ लाख मंदिर का -१
वायु कुमार के ९६ लाख मंदिर का -१ · १० हो गये। मध्यलोक के ४५८ में-
पाँच मेरु के ८० जिनमंदिर का -१
बीस गजदंत के २० जिनमंदिर का -१
दश जंबूवृक्षादि वृक्षों के २० जिनमंदिर का -१
अस्सी वक्षार के ८० जिनमंदिर का -१
एक सौ सत्तर विजयार्ध के १७० जिनमंदिर का -१
तीस कुलाचल के ३० जिनमंदिर का -१
चार इष्वाकार के ४ जिनमंदिर का -१
मानुषोत्तर के ४ जिनमंदिर का -१
नंदीश्वर द्वीप के ५२ जिनमंदिर का -१
कुंडलगिरि के ४ जिनमंदिर का -१
रुचकगिरि के ४ जिनमंदिर का -१
ढाई द्वीप संबंधी कृत्रिम जिनमंदिरों का -१ · १२ हुए। व्यन्तर देवों के ८ भेदों के मंदिरों के ८-
किन्नर देवों के जिनमंदिरों का -१
किंपुरुष देवों के जिनमंदिरों का -१
महोरग देवों के जिनमंदिरों का -१
गंधर्व देवों के जिनमंदिरों का -१
यक्ष देवों के जिनमंदिरों का -१
राक्षस देवों के जिनमंदिरों का -१
भूत देवों के जिनमंदिरों का -१
पिशाच देवों के जिनमंदिरों का -१· ८ हो गये। ज्योतिर्वासी के ५ भेदों के जिनमंदिरों के ५-
चन्द्रमा देवों के जिनमंदिरों का -१
सूर्य देवों के जिनमंदिरों का -१
ग्रह देवों के जिनमंदिरों का -१
नक्षत्र देवों के जिनमंदिरों का -१
तारा देवों के जिनमंदिरों का -१ · ५ हो गये। ऊध्र्वलोक देवों के १२ व्रत-
सौधर्मेन्द्र के ३२ लाख जिनमंदिरों का -१
ईशानेन्द्र के २८ लाख जिनमंदिरों का -१
सानत्कुमारेन्द्र के १२ लाख जिनमंदिरों का -१
माहेन्द्रेन्द्र के ८ लाख जिनमंदिरों का -१
ब्रह्मयुगल के ४ लाख जिनमंदिरों का -१
लांतवयुगल के ५० हजार जिनमंदिरों का -१
शुक्रयुगल के ४० हजार जिनमंदिरों का -१
शतारयुगल के ६ हजार जिनमंदिरों का -१
आनत-प्राणत, आरण-अच्युत के ७०० जिनमंदिरों का -१
नवग्रैवेयक के ३०९ जिनमंदिरों का -१
नवअनुदिश के ९ जिनमंदिरों का -१
पंचअनुत्तर के ५ जिन मंदिरों का -१ · १२ एवं सिद्धशिला का १-ऐसे १० ±१२±८±५±१२±१·४८ व्रत हुए हैं।
इनके मंत्र निम्न प्रकार हैं- समुच्चय जाप्य-
ॐ ह्रीं अर्हं त्रैलोक्यशाश्वतजिनालयजिनबिंबेभ्यो नम:।