तेरहद्वीपसंबंधी अकृत्रिम जिनमंदिरों के अतीव संक्षेप में तेरह व्रत करना है। किसी भी माह में, किसी भी तिथि को इन व्रतों को कर सकते हैं। व्रत के दिन तेरहद्वीप जिनालय पूजा करके प्रत्येक व्रत में एक-एक मंत्र का जाप्य करना है।
व्रत की उत्तम विधि उपवास, मध्यम में अल्पाहार व जघन्य में एक बार भोजन-एकाशन करना है। समुच्चय जाप्य-ॐ ह्रीं अर्हं अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुजिनधर्मजिनागमजिनचैत्यचैत्यालयेभ्यो नम:।
व्रत पूर्ण कर हस्तिनापुर में निर्मित तेरहद्वीप जिनालय के दर्शन करके तेरहद्वीप विधान करना चाहिए एवं तेरह-तेरह उपकरण और शास्त्र मंदिर जी में रखना चाहिए। १. ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-सुदर्शनमेरुप्रमुख-अष्टसप्ततिजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। २. ॐ ह्रीं पूर्वधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-विजयमेरुप्रमुख-अष्टसप्ततिजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ३. ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीखण्डद्वीपसंबंधि-अचलमेरुप्रमुख-अष्टसप्ततिजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ४. ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-मंदरमेरुप्रमुख-अष्टसप्ततिजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ५. ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धद्वीपसंबंधि-विद्युन्मालीमेरुप्रमुख-अष्टसप्ततिजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ६. ॐ ह्रीं चतुरिष्वाकारसंबंधि-चतुर्जिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ७. ॐ ह्रीं मानुषोत्तरपर्वतसंबंधि-चतुर्जिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ८. ॐ ह्रीं नंदीश्वरद्वीपसंबंधि-द्वापंचाशज्जिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ९. ॐ ह्रीं कुण्डलवरद्वीपस्थितकुण्डलवरपर्वतसंबंधि-चतुर्जिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। १०. ॐ ह्रीं रुचकवरद्वीपस्थितरुचकवरपर्वतसंबंधि-चतुर्जिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ११. ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधि-सर्वदेवभवनस्थितजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:।
१२. ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-सप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थित-अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुजिनधर्म-जिनागमजिनचैत्यचैत्यालयेभ्यो नम:। १३. ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-सप्तत्यधिकशतकर्मभूमिस्थित-सप्ततिशतसमवसरणमध्यविराजमानतीर्थंकरपरमदेवेभ्यो नमो नम:। तेरहद्वीप व्रत के लघु मंत्र- १. ॐ ह्रीं जम्बूद्वीपसंबंधि-अष्टसप्ततिजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। २. ॐ ह्रीं पूर्वधातकीद्वीपसंबंधि-अष्टसप्ततिजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ३. ॐ ह्रीं पश्चिमधातकीद्वीपसंबंधि-अष्टसप्ततिजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ४. ॐ ह्रीं पूर्वपुष्करार्धसंबंधि-अष्टसप्ततिजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ५. ॐ ह्रीं पश्चिमपुष्करार्धसंबंधि-अष्टसप्ततिजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ६. ॐ ह्रीं इष्वाकारसंबंधि-चतुर्जिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ७. ॐ ह्रीं मानुषोत्तरपर्वतसंबंधि-चतुर्जिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ८. ॐ ह्रीं नंदीश्वरद्वीपसंबंधि-द्वापंचाशज्जिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ९. ॐ ह्रीं कुण्डलवरपर्वतसंबंधि-चतुर्जिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। १०. ॐ ह्रीं रुचकवरपर्वतसंबंधि-चतुर्जिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। ११. ॐ ह्रीं त्रयोदशद्वीपसंबंधि-सर्वदेवभवनजिनालयजिनबिम्बेभ्यो नम:। १२. ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-अर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुजिनधर्मजिनागमजिनचैत्यचैत्यालयेभ्यो नम:। १३. ॐ ह्रीं सार्धद्वयद्वीपसंबंधि-सप्ततिशततीर्थंकरेभ्यो नम:।