ढाई द्वीप में १७० कर्मभूमियों में यदि एक साथ अधिकतम तीर्थंकर होवें तो १७० हो सकते हैं। एक साथ नहीं भी हों तो भी इन १७० कर्मभूमियों में तीर्थंकर होते रहते हैं। उन १७० कर्मभूमियों के तीर्थंकरों के १७० व्रत किये जाते हैं। इनमें तिथियों का कोई नियम नहीं है। अपनी सुविधा के अनुसार किन्हीं भी तिथियों में यह व्रत करें। मंदिर में तीर्थंकर भगवंतों की प्रतिमा का पंचामृत अभिषेक करके समवसरण पूजा करें। उत्कृष्ट विधि उपवास, मध्यम अल्पाहार और जघन्य विधि एकाशन करना है। व्रत पूर्ति के अनंतर किन्हीं भी तीर्थंकर का समवसरण बनवाकर प्रतिष्ठा करावें या जहाँ-जहाँ समवसरण बने हैं उन की वंदना करके समवसरण विधान करके व्रत का उद्यापन करें।