अष्ट महा शुभ प्रातिहार्य, संयुत अर्हंत जिनेश्वर हैं।
अष्ट गुणान्वित ऊध्र्वलोक, मस्तक पर सिद्ध विराजे हैं।।
अष्ट सुप्रवचन माता संयुत, श्रीआचार्य प्रवर जग में।
आचारादिक श्रुतज्ञानामृत, उपदेशी पाठकगण हैं।।१।।
रत्नत्रय गुण पालन में रत, सर्व साधु परमेष्ठी हैं।
नितप्रति अर्चूं पूजूं वंदूं, नमस्कार मैं करूँ उन्हें ।।
दु:खों का क्षय कर्मों का क्षय, हो मम बोधि लाभ होवे।
सुगति गमन हो समाधि मरणं, मम जिनगुण संपति होवे ।।२।।