१६.प्रवचन वत्सलत्व-साधर्मी जनों में अगाध प्रेम करना। इन सोलह भावनाओं में दर्शन-विशुद्धि भावना का होना बहुत जरूरी है।
फिर उसके साथ दो, तीन आदि कितनी भी भावनाएँ हों या सभी हों, तो तीर्थंकर प्रकृति का बंध हो सकता है। तीर्थंकर प्रकृति के बाँधने वाले जीव के परिणामों में जगत के सभी प्राणियों के उद्धार की करुणापूर्ण भावना बहुत तीव्र हुआ करती है।
प्रश्नावली
(१)भावनाएँ कितनी हैं?
(२) दर्शन विशुद्धि, अभीक्ष्णज्ञानोपयोग, संवेग, साधुसमाधि, अरिहंत भक्ति, आवश्यक अपरिहाणि इन भावनाओं के लक्षण बताओ?
(३)दर्शनविशुद्धि के बिना ये भावनाएँ तीर्थंकर प्रकृति का बंध करायेंगी या नहीं?