”अ. भा. पद्मावती पुरवाल सामाजिक संगठन, इन्दौर की ओर से समाज के लिये आदर्श आचार संहिता”
—निर्मल कुमार जैन (पुष्पगिरि वाले)
सदियों पूर्व से हमारी शुद्धचर्या, पांडित्यपूर्ण आचरण की श्रेष्ठता, पद्मावतीपुरवाल जाति की विशेष पहचान रही है, साथ ही इन जाति की कुल—खानदान तथा वंश परम्परा की पूर्ण शुचिता सदैव दूसरों के लिए प्रेरक एवं अनुकरणीय रही है। हमारे पूर्वजों से जो संस्कार हमें विरासज में मिले हैं, उनका संरक्षण करना समाज के सभी लोगों का परम कर्तव्य है। पद्मावती पुरवाल जाति स्वयं में एक अल्पसंख्यक लोगों की जाति है। वर्तमान में सम्पूर्ण भारतवर्ष में कुल मिलाकर इस जाति के लगभग १२ हजार परिवार हैं। यह बड़े गर्व की एवं महत्त्व की बात है कि इतने लघुरूप में होते हुए भी सदियों से इस जाति का अस्तित्व पूर्ववत् एवं यथावत् है। वर्तमान में इस जाति के आचरण में शिथिलता बरती जा रही है, जिससे इस जाति के भविष्य पर खतरा पैदा हो गया है। कुछ लोग विजातीय या अंतर्जातीय विवाह संबंध नि:संकोच करके अपनी वंश परम्परा की शुचिता समाप्त कर अपनी भावी पीढ़ी को वर्णशंकर बना रहे हैं, यह कृत्य मुश्किल से २ प्रतिशत लोग ही कर रहे हैं, लेकिन असर सम्पूर्ण पद्मावती पुरवाल जाति पर हो रहा है। यद्यपि वर्तमान में इस छोटी सी जाति में महासभा सहित अनेक धड़े, ग्रुप व संस्थाएँ बनी हुई हैं किन्तु इनमें से कोई भी इस सामाजिक बुराई को रोकने में प्रयत्नशील नहीं है। अतीत में सुदृढ़ सामाजिक संगठन थे, जो ग्राम व शहरी क्षेत्रों में पंचायत के रूप में सक्रिय व प्रभावशील थे जो अंतर्जातीय विवाह, दहेत आदि कुप्रथाओं को पनपने नहीं देते थे। ग्रामीण क्षेत्रों की पंचायतें अधिक सुसंगठित थीं। समाज में प्रभुत्व तथा निर्देशन होता था। समाज में होने वाली सभी गतिविधियों तथा शादी—विवाह, दहेत आदि पर इनकी कड़ी नजर रहती थी। शादी विवाह में सभी वर—कन्या पक्षों द्वारा दस्तूर निर्धारित मापदण्डों के अनुसार ही होते थे। दहेज प्रथा नहीं थी। अंतर्जातीय विवाह, विधवा पुनविर्वाह या धरामने जैसे कार्य दण्डनीय अपराध माने जाते थे। वर्तमान में सब उलट हो रहा है, समाज में विकृत दहेज प्रथा, अनावश्यक दिखावा, फिजूलखर्ची, सजावट आदि के रूप में अपव्यय जैसी अनेक बुराईयाँ व्याप्त हो गयी हैं। पद्मावती पुरवाल सामाजिक संगठन, इन्दौर की ओर से समाज के सभी शुभिंचतक एवं प्रबुद्धजनों से पुरजोर अपील है कि ऋषि मुनियों, पंडितों—विद्वानों, भव्यजनों से परिपूर्ण इस पद्मावती परवाल जाति की शुचिता बनाये रखने का संकल्प लें तथा इसमें उत्पन्न हो रही कुप्रथाओं का यथाशक्ति तनमन से विरोध करें। इस सम्बन्ध में सुझाव हैं—
अ. भा. पद्मावती पुरवाल सामाजिक माध्यम से आह्वान किया जाता है कि देश के सभी क्षेत्रों में समाज सुधार हेतु निम्न बिन्दु प्रमुख रूप से अनुकरणीय हैं
वैवाहिक कार्यक्रम दिन में सम्पन्न करना। सामूहिक विवाह आयोजन। धर्म, संस्कृति व पुरातन सुसंस्कारित विवाह पद्धति का पालन। अंतर्जातीय / विजातीय / जैनेतर जातियों में विवाह सम्बन्ध निषेध। रात्रि भोजन न करना, न कराना। दावतों में बुपे (खड़े—खड़े) भोजन व्यवस्था निषेध। # शादियों में दहेज प्रथा पर रोक। ऐसे उत्सवों पर महिलाओं का सड़कों पर नाचने पर रोक। युवा स्वयं सेवकों का संगठन तैयार करना। दावतों/प्रीतिभोजों में व्यंजनों की अधिकतम संख्या निश्चित करना।