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निज ध्यान करने से, आतम निधि मिलती है!
June 12, 2020
भजन
jambudweep
निज ध्यान करने से
तर्ज-क्या खूब………………….
निज ध्यान करने से, आतमनिधि मिलती है।
तन मन की मुरझाई, कलियाँ खिलती हैं, अन्तर के कोने में इक ज्योती जलती है।।निज.।।टेक.।।
संसार भयानक वन है-हाँ हाँ वन है, तो भी वहाँ पर इक खिला धर्म उपवन है।
हमें पाना है उसकी छाया-हाँ हाँ छाया, बस इसीलिए यह आतम ध्यान लगाया।
सुख शांती की प्राप्ति सदा इससे ही मिलती है, अंतर के कोने में इक ज्योती जलती है।।निज.।।१।।
मेरा मन मंदिर निर्मल-हाँ हाँ निर्मल, इसके अंदर इक कमल की वेदी सुन्दर।
जहाँ शांत विराजे भगवन्-हाँ हाँ भगवन्, उस भगवन का ही करना है मुझे दर्शन।।
उस दर्शन से सच्ची दृष्टी हमको मिलती है, अंतर के कोने में इक ज्योती जलती है।।निज.।।२।।
मैं ही ब्रह्मा मैं विष्णू-हाँ हाँ विष्णू, मैं कष्टों को सहने में बनूँ सहिष्णू।
मैं अविचल अडिग सुमेरू-हाँ हाँ मेरू, मैं निज मन को नहिं आकुलता से घेरूँ।
यह शक्ती ‘‘चन्दनामती’’ जिनवर से मिलती है, ।निज.।।3।।
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