तर्ज—अरे! हट जा……
अरे, जग जा रे चेतन! नींद से, तुझे सतगुरु आये जगावन को।।टेक.।।
काल अनादी से इस जग में-२ भ्रमण करे तू चारों गति में-२।
अरे, मोह नींद को दूर भगा, तुझे सतगुरु आये जगावन को।।१।।
मानुष तन दुर्लभ है जग में-२, सदुपयोग इसका तू कर ले-२।
अरे, विषय कषाय को त्याग दे, तुझे सतगुरु आये जगावन को।।२।।
पर का कुछ उपकार भी कर ले-२, सज्जन का सत्कार भी कर ले-२।
अरे, कर ले आतम ध्यान भी, तुझे सतगुरु आये जगावन को।।३।।
सात व्यसन का त्याग तू कर दे-२, पाँच पाप भी मन से तज दे-२।
अरे, धर्म में कर अनुराग रे, तुझे सतगुरु आये जगावन को।।४।।
कहे ‘‘चन्दनामती’’ सभी से-२, कर लो मैत्री भाव सभी से-२।
अरे, भज ले प्रभु का नाम रे, तुझे सतगुरु आये जगावन को।।५।।