देववंदना
Trikal (three times a day) Samayik (act of procedural adoration to Lord Arihant). त्रैकालिक सामायिक में विधिपूर्वक चैत्य व पंचगुरूभक्ति सहित वंदना करने को देववंदना कहते हैं । श्री वसुनंदि आचार्य की मुलाचार टीका के अनुसार , ‘‘सामाइय’’ नाम भवति। जीवितमरणलाभसंयोगविप्रयोग बन्ध्वरिसुखदुःखादिषु यदेतत्समत्वं समानपरिणामः त्रिकालदेववंदनाकरणं च तत्सामायिकं व्रतं भवति।’’ अर्थात् ‘‘ जीवन-मरण, लाभ – अलाभ, संयोग – वियोग, बंधु-शत्रु और सुख – दुःख आदि में जो समान परिणाम का होना है और त्रिकाल में देववंदना करना है वह सामायिक व्रत है’’ इस देववंदना में छह प्रकार का कृतिकर्म भी होता है । यथा – ‘‘ आदाहीणं , पदाहीणं , तिक्खुत्त, तिऊणदं, चदुस्सिरं, वारसावत्तं, चेदि।’’ (1) वंदना करने वाले की स्वाधीनता , (2) तीन प्रदक्षिणा, (3) तीन भक्ति संबंधी तीन कायोत्सर्ग , (4) तीन निषद्या- 1. ईर्यापथ कायोत्सर्ग के अनन्तर करना, 2. चैत्यभक्ति के अंत में बैठकर आलौचना करना और पंचमहागुरूभक्ति संबंधी क्रिया – विज्ञापन करना, 3. पंचगुरूभक्ति के अंत में बैठकर आलोचना करना, (5) चार शिरोनित, (6) बारह आर्वत। यही सब सामायिक विधि में आता है। सम्पूर्ण विधि मूलाचार, आचारसार, अनगारधर्मामृत, क्रियाकलाप एवं पूज्य गणिनी ज्ञानमती माताजी द्वारा लिखित ‘दिगम्बर मुनि’ एंव ‘मुनिचर्या’ ग्रंथों से जानना चाहिए।[[श्रेणी: शब्दकोष ]]