मूकमाटी अपने आप में अद्वितीय अभिनव महाकाव्य है। पुरुषार्थ का अवोध कराने वाली इस मूकमाटी की काया में जीवन के चारों पन दिखाई देते हैं तो भाषा में चारों वेद और भासना में चारों अनुयोगों का ज्ञान झलकता है।
समीचीन तत्व का प्रतिपादन करने वाली यह कृति निश्चित ही भौतिकवादी चकाचौंध में उलझी लक्ष्यहीन दौड़ में भागती हुई दुनिया के लिए जन्म जरा मृत्यु रूपी रोग से छुटकारा दिलाने वाली परम औषध के समान हितकारी है।
पतित से पावन पापात्मा से परमात्मा बनने तक की सम्पूर्ण यात्रा मार्ग की बाधाएं, उन्हें पार करने की कला, एक माटी से घट बनने की प्रक्रिया को रूपक बनाकर यहां प्रस्तुत किया गया है।
मातृभाषा कन्नड़ होते हुए भी इस प्रकार के उत्कृष्ट महाकाव्य की रचना करना आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज की यह अपनी विशेषता ही मानी जायेगी, जो अन्यत्र दुर्लभ है।
यह अनुपम अलौकिक कृति वर्तमान युग में सर्वाधिक लोकप्रिय और चर्चित है। तभी तो मूकमाटी महाकाव्य पर अब तक लगभग 4 डी. लिट् 22 पी-एच डी.. 7 एम. फिल के शोध प्रबन्ध तथा 2 एम एड. और 6 एम. ए. के लघु शोध प्रबन्ध लिखे जा चुके हैं।
प्रस्तुत महाकाव्य चार खण्डों में विभाजित है-1 संकर नहीं वर्ण लाभ, 2 शब्द सो बोध नहीं बोध सो शोध नहीं, 3. पुण्य का पालन, पाप प्रक्षालन, 4. अग्नि की परीक्षा चांदी सी राख। मूकमाटी महाकाव्य अंग्रेजी, बंगला, कन्नड़, मराठी में अनुवादित हो चुका है तथा इस महाकाव्य पर सम्पूर्ण भारत के लगभग 300 समालोचकों ने विभिन्न पक्षों पर अपनी कलम चलायी, जिनका संकलन मूकमाटी मीमांसा के नाम से भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा तीन खण्डों में प्रकाशित है।
राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को दार्शनिक श्रमण दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज द्वारा लिखित लोकविश्रुत कालजयी हिन्दी महाकाव्य ‘मूकमाटी’ के अंग्रेजी अनुवाद दि साइलेंट अर्थ की प्रथम प्रति लोकार्पण हेतु भेंट करते हुए प्रबुद्धजन ।