जहाँ पर जिनेन्द्रदेव की आराधना की जाती है, गुरुओं का विनय किया जाता है, धर्मात्माओं के साथ अतिशय प्रीति रहती है, पात्रों को दान दिया जाता है एवं आपत्ति से पीड़ित प्राणियों को दयाबुद्धि से करुणा दान दिया जाता है, तत्त्वों का अभ्यास किया जाता है, अपने व्रतों में अर्थात् दान-पूजा आदि क्रियाओं तथा पंचअणुव्रत आदि व्रतों में प्रेम किया जाता है, निर्मल सम्यग्दर्शन धारण किया जाता है, वह गृहस्थावस्था विद्वानों के द्वारा पूज्य है। किन्तु इससे विपरीत गार्हस्थ्य जीवन इस संसार में दु:खदायक मोह का जाल ही है।