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शांतिसिन्धु सूरिवर की वंदना करूँ!
June 13, 2020
भजन
jambudweep
शांतिसिन्धु सूरिवर
तर्ज-धीरे धीरे बोल………
शांतिसिन्धु सूरिवर की वंदना करूँ, वंदना करूँ-गुरुवन्दना करूँ।
वे प्रथमाचार्य महान थे, इस युग के लिए वरदान थे।। शांतिसिंधु…।।टेक.।।
सन् उन्निस सौ पचपन में कुंथलगिरि, पर्वत पर अन्तिम समाधि घोषित करी।
जन सागर उमड़ा कुंथलगिरि तीर्थ पर, लाखों जनता धन्य हुई गुरु दर्श कर।।
वन्दन करूँ, सुमिरन करूँ, वे प्रथमाचार्य महान थे, इस युग के लिए वरदान थे।। शांतिसिंधु…।।१।।
ज्ञानमती माताजी थीं तब क्षुल्लिका, गुरु समाधि दर्शन हेतू पहुँची वहाँ।
संग में एक विशालमती थीं क्षुल्लिका, और न जाने कितने श्रावक श्राविका।।
वंदन करूँ, सुमिरन करूँ, वे प्रथमाचार्य महान थे, इस युग के लिए वरदान थे।। शांतिसिंधु…।।२।।
छत्तिस दिन की यम सल्लेखना पूर्ण की, भादों शुक्ला दुतिया की तिथि आ गई।
कहा ‘‘ॐ सिद्धाय नम:’’ बस चल दिये, नश्वर तन को छोड़ स्वर्ग में बस गये।।
वंदन करूँ, सुमिरन करूँ, वे प्रथमाचार्य महान थे, इस युग के लिए वरदान थे।। शांतिसिंधु…।।३।।
धर्मसूर्य हो गया अस्त मानो यहाँ, किन्तु रश्मियों को अपनी बिखरा गया।
इसीलिए मुनि परम्परा जीवन्त है, तभी ‘‘चन्दनामती’’ धरा पर सन्त हैं।।
वंदन करूँ, सुमिरन करूँ, वे प्रथमाचार्य महान थे, इस युग के लिए वरदान थे।। शांतिसिंधु…।।४।।
शांतिसागराचार्य वर्ष यह चल रहा, गुरुवर का उपकार स्मरण कर रहा।
ज्ञानमती माताजी की सम्प्रेरणा, है यह सबके मन में जागे चेतना।।
वंदन करूँ, सुमिरन करूँ, वे प्रथमाचार्य महान थे, इस युग के लिए वरदान थे।। शांतिसिंधु…।।५।।
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