ऋषभदेव के पुत्र सब, भरत आदि शत एक।
दीक्षा ले शिवपथ लिया, नमूँ नमूँ शिर टेक।।१।।
भरत चक्रि के विवर्द्धनादि-सुत नव सौ तेईस।
दीक्षा ले शिवपथ लिया, नमूँ नमूँ नत शीश।।१।।
—शंभु छंद—
ऋषभेश्वर के इक्ष्वाकुवंश में, चौदह लाख प्रमित राजा।
निज सुत को राज्यसौंप दीक्षा, ले सिद्ध बने शिव के राजा।।
इन अविच्छिन्न सब सिद्धों को, हम मन वच तन से नमते हैं।
हम भी उनके समीप पहुँचें, बस यही याचना करते हैं।।१।।
१. ॐ ह्रीं श्री भरतेश्वरसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२. ॐ ह्रीं श्री अर्ककीर्तिसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
३. ॐ ह्रीं श्री स्मितयश:सिद्धपरमेष्ठिने नम:।
४. ॐ ह्रीं श्री बलसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
५. ॐ ह्रीं श्री सुबलसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
६. ॐ ह्रीं श्री महाबलसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
७. ॐ ह्रीं श्री अतिबलसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
८. ॐ ह्रीं श्री अमृतबलसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
९. ॐ ह्रीं श्री सुभद्रसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१०. ॐ ह्रीं श्री सागरसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
११. ॐ ह्रीं श्री भद्रसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१२. ॐ ह्रीं श्री रवितेज:सिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१३. ॐ ह्रीं श्री शशिसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१४. ॐ ह्रीं श्री प्रभूततेज:सिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१५. ॐ ह्रीं श्री तेजस्विसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१६. ॐ ह्रीं श्री तपनसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१७. ॐ ह्रीं श्री प्रतापवद्सिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१८. ॐ ह्रीं श्री अतिवीर्यसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
१९. ॐ ह्रीं श्री सुवीर्यसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२०. ॐ ह्रीं श्री उदितपराक्रमसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२१. ॐ ह्रीं श्री महेन्द्रविक्रमसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२२. ॐ ह्रीं श्री सूर्यसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२३. ॐ ह्रीं श्री इन्द्रद्युम्नसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२४. ॐ ह्रीं श्री महेन्द्रजित्सिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२५. ॐ ह्रीं श्री प्रभुसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२६. ॐ ह्रीं श्री विभुसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२७. ॐ ह्रीं श्री अविध्वंससिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२८. ॐ ह्रीं श्री वीतभीसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
२९. ॐ ह्रीं श्री वृषभध्वजसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
३०. ॐ ह्रीं श्री गरुडांकसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
३१. ॐ ह्रीं श्री मृगांकसिद्धपरमेष्ठिने नम:।
३२. ॐ ह्रीं श्री युगादि-इक्ष्वाकुवंशीय-अविच्छिन्नसिद्धपदप्राप्तचतुर्दशलक्ष-सिद्धपरमेष्ठिभ्यो नम:।