सिद्धी को प्राप्त हुए होते, होवेंगे भरतैरावत में।
ये भूत भवद् भावी जिनवर, मेरे भी रक्षक हों जग में।।
इस मध्यलोक के मध्य प्रथित, वर जम्बूद्वीप प्रमुख जानो।
उसके दक्षिण में भरत तथा, उत्तर में ऐरावत मानो।।१।।
पूरब औ अपर धातकी खंड, द्वीप में दक्षिण उत्तर में।
दो भरत और दो ऐरावत, ये चार क्षेत्र होते द्वय में।।
इस पुष्करार्ध पूरब पश्चिम, दोनों के दक्षिण उत्तर में।
इक एक भरत ऐरावत से, ये चार क्षेत्र होते दो में।।२।।
ये पांच भरत औ ऐरावत, हैं पांच इन्हीं दश के मधि में।
जो आर्यखंड हैं उन सबमें, षट्काल परावर्तन सच में।।
जो चौथा काल वर्तता है, तब चौबिस तीर्थंकर होते।
ये जग में धर्मचक्रमय तीर्थ, प्रवर्तक तीर्थेश्वर होते।।३।।
ये भूतकाल में हुए तथा, होते हैं वर्तमान युग में।
होवेंगे तथा भविष्यत में उन सबको हो नमोस्तु नित मे।।
इस विध दश क्षेत्रों में त्रिकाल, संबंधी तीर्थंकर जो हैं।
ये तीसों चौबीसी जिनवर, मेरे को शिवलक्ष्मी देवें।।४।।
इस विध जो यह संस्तुति पढ़ते, वे सर्व कल्याणों को पाते।
पुनरपि पांचों कल्याण पाय, वृष तीर्थाधिप भी बन जाते।।
वे काल अनंतानंतों तक, परमानंदालय में जाके।
निज केवल ‘ज्ञानमती’ संपति, पा नहीं रहें नित सुख पाके।।५।।