श्रावकों के लिए त्रेपन क्रियाओं का रयणसार आदि ग्रंथों में विधान है। इनके व्रत की विधि व्रत तिथि निर्णय में कही गई है। इसमें ८ मूलगुण, १ रात्रिभोजन त्याग, १ जलगालन, १ साम्यभाव, ५ अणुव्रत, ३ गुणव्रत, ४ शिक्षाव्रत, ४ दान, ११ प्रतिमा, १२ तप और ३ रत्नत्रय, ऐसे त्रेपन क्रियाओं के त्रेपन व्रत माने हैं। इनकी तिथियाँ निम्न प्रकार हैं- आठ मूलगुण के——अष्टमी के ८ व्रत
रात्रिभोजन त्याग का——प्रतिपदा का १ व्रत
जलगालन का——प्रतिपदा का १ व्रत
साम्यभाव का——प्रतिपदा का १ व्रत
पाँच अणुव्रत के——पंचमी के ५ व्रत
तीन गुणव्रत के——तृतीया के ३ व्रत
चार शिक्षाव्रत के——चतुर्थी के ४ व्रत
चार दान के——चतुर्थी के ४ व्रत
ग्यारह प्रतिमा के——एकादशी के ११ व्रत
बारह तप के——द्वादशी के १२ व्रततीन
रत्नत्रय के——तृतीया के ३ व्रत
इस प्रकार त्रेपन व्रत किये जाते हैं। इनमें उत्कृष्ट व्रत तो उपवास से किया जाता है। मध्यम व्रत जल, फल, मेवा, दूध आदि अल्प आहार से किया जाता है तथा जघन्य व्रत एक बार शुद्ध भोजन करके ‘एकाशन’ से भी किया जाता है।
यदि तिथि से व्रत नहीं कर सकते, तो खुले व्रत अर्थात् अष्टमी, चतुर्दशी आदि को कभी भी ५३ व्रत कर सकते हैं। इस व्रत के ५३ मंत्र व समुच्चय मंत्र आगे दिये हैं। प्रत्येक व्रत में चौबीस भगवान की प्रतिमा का या किन्हीं भी तीर्थंकर की प्रतिमा का अभिषेक करके चौबीसी पूजा और व्रत की पूजा करें एवं प्रत्येक व्रत में समुच्चय मंत्र की १ माला जपकर प्रत्येक मंत्रों में से १-१ मंत्र की क्रम से जाप्य करें, ऐसे त्रेपन व्रतों को पूर्ण करें। इन त्रेपन क्रिया के मंत्रों में गुणव्रत एवं शिक्षाव्रतों को श्री गौतम स्वामी द्वारा कथित पाक्षिकयतिप्रतिक्रमण से लिया गया है। व्रत पूर्ण कर शक्ति के अनुसार उद्यापन में जिनप्रतिमा प्रतिष्ठा, ग्रंथ प्रकाशन आदि कराके त्रेपन-त्रेपन वस्तुओं को-छत्र, चँवर आदि को मंदिर में देवें एवं त्रेपन-त्रेपन फल चढ़ाकर पूजा करके व्रत पूर्ण करें।
इस व्रत से श्रावक धर्म, जो कि मुनिधर्म का छोटा भाई है, इस धर्म की पूर्णता होती है एवं वह उत्तम श्रावक मुनि बनकर मोक्ष प्राप्त करने का अधिकारी बन जाता है अर्थात् इस व्रत का फल परंपरा से मोक्ष को प्राप्त कराने वाला है।
श्रावक त्रेपन क्रिया व्रत पूजा एवं जाप्य