Jambudweep - 7599289809
encyclopediaofjainism@gmail.com
About Us
Facebook
YouTube
Encyclopedia of Jainism
Search
विशेष आलेख
पूजायें
जैन तीर्थ
अयोध्या
तीर्थंकर पंचकल्याणक पूजा
August 19, 2020
पूजायें
jambudweep
तीर्थंकर पंचकल्याणक पूजा
तीर्थंकर पंचकल्याणक तिथि व्रत में
अथ स्थापना
गीता छंद
वर पंचकल्याणक जगत् में, सर्वजन से वंद्य हैं।
त्रैलोक्य में अति क्षोभ कर, सुर इन्द्रगण अभिनंद्य हैं।।
मैं पंचमी गति प्राप्त हेतू, पंचकल्याणक जजूँ।
आह्वाननादी विधि करूँ, संपूर्ण कल्याणक भजूँ।।१।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकसमूह! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं।
अथ अष्टक
भुजंगप्रयात छंद
पयो सिंधु को नीर झारी भराऊँ।
प्रभो आपके पाद धारा कराऊँ।।
महा पंचकल्याणकोें को जजूँ मैं।
महापंच संसार दुख से बचूँ मैं।।१।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकेभ्य: जलं निर्वपामीति स्वाहा।
सुगंधीत चंदन कपूरादि वासा।
चढ़ाते तुम्हें सर्व संताप नाशा।।
महा पंचकल्याणकोें को जजूँ मैं।
महापंच संसार दुख से बचूँ मैं।।२।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकेभ्य: चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
पयोराशि के फेन सम तंदुलों को।
चढ़ाऊँ तुम्हें सौख्य अक्षय मिले जो।।
महा पंचकल्याणकोें को जजूँ मैं।
महापंच संसार दुख से बचूँ मैं।।३।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकेभ्य: अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
जुही केवड़ा चंपकादी सुमन हैं।
तुम्हें पूजते काम व्याधी शमन है।।
महा पंचकल्याणकोें को जजूँ मैं।
महापंच संसार दुख से बचूँ मैं।।४।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकेभ्य: पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
कलाकंद लाडू भरा थाल लाऊँ।
क्षुधा डाकिनी नाश हेतू चढ़ाऊँ।।
महा पंचकल्याणकोें को जजूँ मैं।
महापंच संसार दुख से बचूँ मैं।।५।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकेभ्य: नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
मणी दीप ज्योती भुवन को प्रकाशे।
करूँ आरती ज्ञान ज्योती प्रकाशे।।
महा पंचकल्याणकोें को जजूँ मैं।
महापंच संसार दुख से बचूँ मैं।।६।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकेभ्य: दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
अगनिपात्र में धूप खेऊँ दशांगी।
करम धूम्र फैले चहूँ दिक् सुगंधी।।
महा पंचकल्याणकोें को जजूँ मैं।
महापंच संसार दुख से बचूँ मैं।।७।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकेभ्य: धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
नरंगी मुसम्बी अनन्नास लाऊँ।
महा मोक्षफल हेतु आगे चढ़ाऊँ।।
महा पंचकल्याणकोें को जजूँ मैं।
महापंच संसार दुख से बचूँ मैं।।८।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकेभ्य: फलं निर्वपामीति स्वाहा।
जलादी वसू द्रव्य से थाल भर के।
चढ़ाऊँ तुम्हें अघ्र्य रत्नादि धर के।।
महा पंचकल्याणकोें को जजूँ मैं।
महापंच संसार दुख से बचूँ मैं।।९।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकेभ्य: अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
सकल जगत में शांतिकर, शांतिधार सुखकार।
जिनपद में धारा करूँ, सकल संघ हितकार।।१०।।
शांतये शांतिधारा।
सुरतरु के सुरभित सुमन, सुमनस चित्त हरंत।
पुष्पांजलि अर्पण करत, मिले सौख्य दुख अंत।।११।।
दिव्य पुष्पांजलि:।
जाप्य-ॐ ह्रीं पंचकल्याणकसहितचतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यो नम:।
जयमाला
दोहा
तीन लोक की सम्पदा, करे हस्तगत भव्य।
तुम जयमाला कंठधर, पूरे सब कर्तव्य।।१।।
चाल-हे दीनबंधु…….
जैवंत मुक्तिकन्त देवदेव हमारे।
जैवंत भक्त जन्तु भवोदधि से उबारे।।
हे नाथ! आप जन्म के छह मास ही पहले।
धनराज रत्नवृष्टि करें मातु के पहले।।१।।
माता की सेव करतीं श्री आदि देवियाँ।
अद्भुत अपूर्व भाव धरें सर्व देवियाँ।।
जब आप मात गर्भ में अवतार धारते।
तब इन्द्र सपरिवार आय भक्ति भार से।।२।।
प्रभु गर्भ कल्याणक महा उत्सव विधी करें।
माता-पिता की भक्ति से पूजन विधी करें।।
हे नाथ! आप जन्मते सुरलोक हिल उठे।
इन्द्रासनों के कम्प से आश्चर्य हो उठे।।३।।
इन्द्रों के मुकुट आप से ही आप झुके हैं।।
सुरकल्पवृक्ष हर्ष से ही फूल उठे हैं।।
वे सुरतरू स्वयमेव सुमन वृष्टि करे हैं।
तब इन्द्र आप जन्म जान हर्ष भरे हैं।।४।।
तत्काल इन्द्र सिंहपीठ से उतर पड़े।
प्रभु को प्रणाम करके बार-बार पग प़ड़ें।।
भेरी करा सब देव का आह्वान करे हैं।
जन्माभिषेक करने का उत्साह भरे हैं।।५।।
सुरराज आ जिनराज को सुरशैल ले जाते।
सुरगण असंख्य मिलके महोत्सव को मनाते।।
जब आप हो विरक्त देव सर्व आवते।
दीक्षा विधी उत्सव महामुद से मनावते।।६।।
जब घातिया को घात ज्ञान सम्पदा भरें।
तब इन्द्र आ अद्भुत समवसरण विभव करें।।
तुम दिव्य वच पियूष को पीते असंख्यजन।
क्रम से करें वे मुक्तिवल्लभा का आलिंगन।।७।।
जब आप मृत्यु जीत मुक्तिधाम में बसे।
सिद्ध्यंगना के साथ परमानन्द सुख चखें।।
सब इन्द्र आ निर्वाण महोत्सव मनावते।
प्रभु पंचकल्याणकपती को शीश नावते।।८।।
हे नाथ! आप कीर्ति कोटि ग्रंथ गा रहे।
इस हेतु से ही भव्य आप शरण आ रहे।।
मैं आप शरण पायके सचमुच कृतार्थ हूँ।
बस ‘ज्ञानमती’ पूर्ण होने तक ही दास हूँ।।९।।
दोहा
पाँच कल्याणक पुण्यमह, हुये आपके नाथ।
बस एकहि कल्याण मुझ, कर दीजे हे नाथ।।१०।।
ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरपंचकल्याणकेभ्य: जयमाला पूर्णार्घं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलि:।
गीता छंद
जो पंचकल्याणक महापूजा महोत्सव को करें।
वे पंचपरिवर्तन मिटाकर, पंच लब्धी को धरें।।
फिर पंचकल्याणक अधिप हो, मुक्तिकन्या वश करें।
‘‘सुज्ञानमति’’ रविकिरण से, भविजन कमल विकसित करें।।१।।
।।इत्याशीर्वाद:।।
Tags:
Vrat's Puja
Previous post
तीर्थंकर जन्मभूमि तीर्थ पूजा
Next post
तेरहद्वीप पूजा
Related Articles
भगवान श्री कुन्थुनाथ जिनपूजा
February 19, 2017
jambudweep
भगवान श्री धर्मनाथ जिनपूजा!
February 19, 2017
jambudweep
आचार्य श्रीवीरसागर महाराज की पूजन
July 29, 2020
jambudweep
error:
Content is protected !!